________________
तिलोयपम्पत्तो
[ गाथा : ३-३१ मध्यम प्रासादोंका विस्तारादिमसिम पासाबान, हवि *दिवस HEATER it gre's दोगि सथा बोहत, पोकं एकसयका ॥३३॥
दंड १५० । २०० 1 १००। प:-मध्यम प्रासादोंमें प्रत्येकको ऊँचाईडेढसो (१५० ) अनुव, लम्बाई दोसी (१००) धनुष और पौड़ाई एक सौ (१००) धनुष प्रमाण है ।। ३३ ।।
मध्यम प्रासादोंके द्वारोंका विस्तारादिचरबीसं पापानि, ताण दुपारेसु होवि रामबहो । बारस प्रट कमेन, बंश बिस्मार-अवगाढा ॥३४॥
___ दंड २४ । १२ । ८ । अपं:-इन प्रासावोंमें प्रत्येक द्वारकी ऊँचाई चौबीस धनुष, विस्तार बारह धनुष और अवगाड़ आठ घंनुप प्रभाव है।॥ ३४11
व्यन्तर नगरोंमा विशेष वर्णनसामन्म-वेत्त-पबलो, गम्भ-सबा-गार-आसण-गिहायो ।
गेहा हॉसि विदिता, बतर-पयरेस रम्मयरा ॥३५।।
पर्व: व्यन्तरनगरोंमें सामान्य गृह, सत्यपह, कदलीग्रह. गर्भगृह, मतागृह, नाटकगृह और आसनगृह, ये नानाप्रकारके रम्य ग्रह होते हैं ।। ३५ ॥
मोप-'मरण-ओलग-वण-अभिय-गबणाच पि ।
भागाविह-सालाओ पर-रयण-विमिम्मिरा होति ।।१६॥
प्रम:--(उन नगरोंमें } उसम रत्नोंसे निर्मित मैथुनवाला, मनमासा, मोलाणाला, बन्दनशाला, अभिषेकशाला और नृत्यमासा, इसप्रकार नानाप्रकारको पालाएं होती है ॥ ३६॥
१. व. मखम मोलंग, व. मंण उलन, F.. मेरल लग ।