SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२४ ] वाहक तिलोयपण्याती अहवाल-प्यमुहं सर्वणेच पुष्पिद-दिग्द-वयनस्स । जबसम्मवि जीवानं, जीए सर सप्पियासबी रिद्धी ।। १०६८ ।। । एवं रस- रिद्धी समता । म :- अथवा, जिस ऋद्धिके प्रभावसे मुनीन्द्रके दिव्य वचनोंके सुननेसे ही जीवोंके दुःखादिक शान्त हो जाते हैं, वह सत्रिवी ऋद्धि है ।। १०६८ ।। । इसप्रकार रस ऋद्धिको वर्णना समाप्त हुई। क्षेत्र ऋद्धिके भेद तिहूवन विम्य· जणणा, वो मेवा होंति खेत- रिद्धीए । प्रक्लीन महानसिया, अक्लीण महालया च मामे आचार्य श्री सुवि धर्म :- त्रिभुवनको विस्मित करनेवाली क्षेत्र ऋद्धिके दो भेद हैं, भक्षीरणमहालय ||१०६९ श्रीमहानमिक ऋद्धि लाहंतराध-कम्मक्शकोवसम-संजुवाए जोन फुई । सुणि भुत-से समन्नं वालिय- मक्कम्सि एव वि ।। ११०० ।। सहिवसे राज्यं संधावारेण धत्रकवट्टिस्स । जिलवे दिसा, अक्लीन-महानसा रिद्धी ॥११०१ ॥ १. ब. फ. उ. मुख-मुख से पियंक दि ज. प. शित्तमे से म मि व. श्रयं :- लाभान्तरायकर्मक्षयोपशम से संयुक्त जिस ऋद्धिके प्रभावसे मुनिके प्राहारोप रान्त पालीके मध्य बची हुई भोज्य सामग्रीमेंसे एक भी वस्तुको यदि उस दिन चक्रवर्तीका सम्पूर्ण कटक भी खाये तो भी वह लेवामात्र क्षीण नहीं होती है, वह मक्षी महानसिक ऋद्धि है ।।११०० ११०१॥ FI H [ गाया : १०६६-११०१ " JF " ।।१०६६।। लोणमहान सिंक और " L
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy