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गाषा । १०५२-१.५५ ] पजत्यो महाहियारो
पर्य:-जिस ऋषिके प्रभावसे मुनिजन नीचे, ऊपर और तिरछे फंसने वाले पुएंका भवसम्बन लेकर अस्मति (एकसी गति ) पावक्षेप करते हुए गमन करते हैं, वह-धूम-धारण मामक ऋद्धि है ।।१०५१॥
अविराहिण औफे, अपुकाए बहु · विहाण मेयार्ण ।
जं उरि गच्छन मुमो, सा रिवी मेघ - वारणा गाम ॥१०५२॥
प:-जिस ऋद्धिसे मुनि अप्कारिक जीवोंको पोड़ा न पहुँचाकर बहुत प्रकारके मेषों परसे गमन करते है. वह मेघ-वारण नामक ऋद्धि है ।।१०५॥
धारा-चाररण-ऋद्धि
अधिराहिय तल्लोणे, मोवे घन मुक्क-पारि-धाराणं ।
'स्वरि जं जावि मुणी, सा बारा • चारणा रिडी ॥१०५३।।
मपं:-जिसके प्रभावसे मुनि मेषोंसे छोड़ो गयो जलधाराओंमें हिंघन जीवों की विराधना न कर उनके ऊपरसे जाते हैं. वह धारा-चारण-ऋद्धि है ।।१०५३।।
मकड़ी तन्तु-चारण-ऋद्धिमकाय-संतु-पती-उरि अहिलधुओ तुरिव-पर-खेवे ।
गन्धेषि मुरिण - महेसी, सा मक्का -संतु-बारणा रिa||१०५४।।
मर्ष:-जिसके द्वारा मुनि-पहर्षि शीघ्रतासे किए गये पद-विक्षेपमें प्रत्यन्त लघु होते हुए. मकड़ीके सन्तुओंकी पंक्ति परसे गमन करता है वह मकड़ो तन्सु-चारण-ऋखि है ।।१०५४।।
ज्योतिश्चारण ऋद्धि
आह-उल-तिरिय-पसरे, किरणे अवलंबिऊन जोवीनं । गच्छेदि तवस्ती, सा रिती जोति • चारणा णाम ॥१०५५॥
१.प. च... म. य. उ. सरिम।
२.१. प. क. प्रविसमियूगा ।