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लिलोयपणणसी [ गाथा : १०४८-१०५.१ म:-जिस ऋद्धिस विविध प्रकारके वन फलोंमें रहने वाले जीवोंकी विराधना न करते हुए उनके ऊपरसे चौता ( बसता ) है, वह फल-पारण ऋद्धि है ।।१०४७।।
पुष्पपारण-ऋद्धि
अधिराहिदून जोवे, तल्लोणे बह • बिहान पुष्फाणं । उरिन्मिजं पसम्पति, सारिती पुम्फ-वारणा नामा ॥१४॥
कि :... KARTE THEATRE TET म :-जिस ऋद्धिके प्रभावसे बहुत प्रकारके फूलों में रहने वाले जीवोंकी विराधना न करके उनके ऊपरस जाता है. वह पुष्पचारण नामक ऋद्धि है ।।१०४!
पत्रचारण-ऋद्धि
अविरहिवण जीये, तल्लीन मह - विहाण पत्ताणं ।
मा उमरि बचाव पुरणी, सा रिडी पत्त-वारणा नामा ||१०४६॥
प्र:-जिस दिका धारक मुनि बहुत-प्रकारके पत्तों में रहने वाले बीबोंकी विराधना न करके उनके ऊपरसे चला जाता है वह पत्र-पारण नामक यदि है ॥१०४।।
भग्निशिखा-पारण ऋद्धि
अविराहिण जीवे, अग्गिसिहा - संठिए विचित्तानं ।
ताण उरि गम, अग्गिसिहा - चारका रिसी ।।१०५०।। पर्ष :- अग्निनिधानों में स्थिस जोषोंको विराधमा न करके उन विचित्र अग्नि-शिवानों परसे गमन करना अग्निशिखा ऋदि कहलाती है ॥१०५०।।
धूम-धारण-ऋद्धिमाह-उल-तिरिय-पसर, पूमं 'अवलंबिका जे देति । पर - सेबे अक्क्षलिया, सा रिसी धूम - मारणा जाम ॥१०५५।।
१.८... क, प्रनिर्म बिकए ।