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पाषा । १.४१-१०४७ ] उत्यो महाहियारो
गब्वेवि जिए गयणे, सा रिसो गया-गामिणो मामा । पारन • रिखी बहुविह - वियप्प - संबोह • बिस्परिका १०४३॥ जल-जंघा-फल-पुल्फ, पत्तम्गि - सिंहाण धूम - मेधारणं ।
पारा मस्कर'- संतू - जोदो - मराण वारणा कमसो ॥१०॥४॥ ' वाभिमा- कभKARTE-
चारणस्त । इममेंसे जिस अनिके द्वारा कायोत्सर्ग अथवा अन्य प्रकारसे ऊम्य स्थित होकर पाठकर आकाशमें गमन किया जाता है, वह पाकास-नामिनी मामवासी ऋद्धि है। दूसरी पारण-ऋद्धि क्रमशः जन-भारण, जलाधारण, फल-पारण, पुष्प-वारण, पत्र-पारण, मग्निशिया-नारण, घूम-बारण, मेष-चारण, धारा-पारण, मकड़ी-तन्तु-पारण. ज्योतिश्चारण और महञ्चारण इत्यादि अनेक प्रकारके विकल्प-समूहोंसे विस्तारको प्राप्त है ।।१०४२-१०४४।।
जल-पारण-ऋद्धिअविराहियम्पुकाए. जीवे पद - खेवहि जं जाधि ।
पावेवि जमाहि-मम्झ सम्वे व अल - धारणा' - रिवो ॥१०४५।।
बर्ष:-जिस दिसे जीव समुद्रके माध्यमे अर्थात् जलपर पर रखता आ जाता है और दौड़ता है किन्तु जलकायिक जीवोंकी विरावना नहीं करता घह जल-चारण-अद्धि है।॥१०४५।।
जजाबारण-ऋद्धिपवरंगुल-मेस-महि, गिग गयाम्म डिल-जाणु विणा । " चं गह- जोषण - गमर्म, सा जंघाचारणा रियो ।।१०४६।।
भ:-चार-अंगुल प्रमाण पृथिवोको छोड़कर तथा घुटनों को मोले बिना जो भाकाशमें बहुत योजनों पर्यन्त गमन करता है, वह अनाचारण-ऋद्धि है ॥१०४६।।
___ फलधारण-ऋद्धिअविराहिम जीये, तस्सीले बण - फलाण विविहानं । रिम्मि जं पधापति, स विषय फल - चारणा रिखी ॥१०४७॥
1..ज, . मकर संव। २.प. म. प. मल-पासएा ।