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तिलोपरणती [ गाथा । १०३६-१०४२
ईमत्व-वशित्व-ऋद्धिबिस्सेसाग पाहतं, अमान ईसस - जाम • रिती सा।
बसमेति तब - बसेन, संजीबोहा बसित - रियो सा ॥१०३६॥
प:-जिससे सब मनुष्यों पर प्रभुत्व होता है. वह शिव-नामक ऋद्धि है तथा जिससे तपो-वस द्वारा जीव-समूह वय में होते हैं. वह वशिरव अदि कही जाती है ।।१०३६।।
अप्रतिघात-ऋद्धिसेल-सिसा-सम्पनुहानामतर' होडून गपवं ।
जं चादि सारो . अप्पडिपावेति मा URATRNET
प:-जिस हविक बससे शंल, सिसा और वृक्षाविकके मध्य में होकर पाकाचके सदृश गमन किया जाता है. वह सापक मामवाली अप्रतिषात-ऋद्धि है ॥१४॥
वहस्यता एवं कामरूपित्त-द्धिहदि 'अदिसतं, अंतखाणाभिहाण - रिकी सा । जगवं बहुरूवाणि, प्रो विश्यवि कामरूप - रियो सा १०४१॥
विकिरिया-रिति ममता । म:-जिस दिसे प्रदृश्यता प्राप्त होती है, वह अन्तर्वान-नामक अखि मोर जिससे मुगपत् बहुतसे रुप रचे जाते हैं. यह कामरूप-ऋडि है ।।१०४१॥
।विकिया-ऋवि-समाप्त हुई। क्रिया ऋद्धिके भेद, बाझाश-गामिनी-शक्षिका लक्षण एवं पारण-टिके भेद
दुबिहा किरिया - रिसी, महपाल-गामित-बारामहि । टोमो आसीनो, काउन्सग्गेन पररेणं ।।१०।२।।
२...ब.क.अ. य. न. दिसत
१, 2.ब.क... उ. पमुहाणं मंसरतं होडम। ....क, इति। ४.८,.. उ. उसीप्री, क. उन्मीयो।