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गाया : १०३५ - १०३८ ]
स्थो महाहिमारी
अणिमा- ऋद्धि-
अणु-स- करणं अणिमा, अनुछिरे पबितिरण तस्येव । संदावार, जिस्सेसं
विकिरदि
चक्कबट्टिस्स ।।१०३५।
:- शरीरको अणु बराबर ( छोटा ) कर लेना अणिमा ऋद्धि है। इस ऋषिके प्रभावसे महर्षि अगुके बराबर छिद्रमें प्रविष्ट होकर वहाँ हो ( विक्रिया द्वारा ) चक्रवर्ती सम्पूर्ण कटककी रचना करता है ।। १०३५ ।।
महिमा लघिमा चौर गरिमा जियाँ
कार्यक:- आई ही सुनिटी मेरुवमाण े- देहा, महिमा प्रमिलाउ लहूतरो लहिमा : माहिती गुरुवधर्म च गरिम ति अति ।। १०३६ ।।
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अर्थ :- शरीरको मेरु बराबर ( बड़ा ) कर लेना महिमा, वायुसे भी लघुतर ( पतला ) करनेको लघिमा और वखसे भी अधिक गुरुता युक्त कर लेनेको गरिमा ऋद्धि कहते हैं ।। १०३६ ॥
प्राप्त-ऋद्धि
सूमीए चेटुसो, अंगुलि अग्गेण नर ससि पहुदि ।
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मेव सिहरानि अपने अं पार्थानि पत्ति रिद्धीसा ॥१०३७ ॥
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:- भूमिपर स्थित रहकर अंगुलिके अग्रभागले सूर्य-चन्द्र बादिरुको, मेरु-शिरोंकी
तथा अन्य भी वस्तुओं को जो प्राप्त करती है वह प्राप्ति ऋद्धि कहलाती है ।। १०३७।।
प्राकाम्य ऋद्धि
सलिले दियभूमीए उम्मक-निमज्जनाणि जं कुरराबि । मोए बिय सलिसे, गच्छमि पाकम्प रिद्धी सा ॥१०३६ ||
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:-जिसके प्रभावसे ( श्रमण ) पृथिवोपर भी जलके सहवा उन्मज्जन- निमज्जन करता है तथा जलपर भी पृथिवोके सहा गमन करता है। वह प्राकाम्य ऋद्धि है ।। १०३८
१. ८. लिए । २. ब. क. स. मेवारा। 1. 4, 4, 7. menfe a