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________________ गाथा : १०१६-१०२४ ] कर-चरण तल-म्पहविसु, पंक्रम कुलिसावियाणि बठूर्ण । जं सिय-काल-सुहाई लक्सर से लक्लग - गिमितं ॥ १०१ ॥ समक्षण-निर्मित गदं । मोद :- हस्ततल (हथेली) और चरणतल (पगतली ) आदि में कमल एवं वन्त्र इत्यादि चिह्नोंको देखकर कालत्रयमें होने वाले सुखादिको जानना, यह लक्षण निर्मित है ।। १०२६ ।। ardestis श्री तुकी । लक्षण निमित्तका कपन समाप्त हुआ । सुर-दाणव- एक्खस- गर तिरिएहि छिन्न-सत्य-स्वाणि । पासाव पयर सादियाणि चिन्हाणि वर्ण ॥। १०२० ।। - - महाहियारो + - कालय संभू, सुहासु मरण- विविह वयं च । सुक्खा लमखर, चिन्ह-निमिदर्शि तं जागइ ।। १०२१।। | विरह-निमितं गदं । :- देव, दानव, राक्षस, मनुष्य और तिर्यञ्चोंके द्वारा छेदे गये शस्त्र एवं वस्त्रादि तथा प्रसाद, नगर और देशादिक चिह्नोंको देखकर त्रिकालमें उत्पन्न होने वाले शुभ-यशुभको, मरणको, विविध प्रकार के द्रव्योंको और सुख-दुःखको जानना यह चिह्न निमित्त है ।। १०२०- १०५१ ।। · - - | विनिमितका कथन समाप्त हुआ । वातादि दोसतो, पछिम रते मयंक - रवि-पाद । निय सुह-कमल-पबिट्टु, बेक्लइ सजर्णाम्म सुह - सउनं ।। १०२२॥ घड सवभंगावी, रासह करभाविएसु आरोहं । परबेस गमण सम्बं जं वेबसइ असुहतं ।। १०३३॥ - 1 - - वं भासह दुक्ख सह तं वियस निमित १. . . . . वद । २. व. बालवि ३. ४. | ३०५ व्यमुहं कालसए बि संजाई । जिव्हा मालो' ति बो-भेदं ।।१०२४ ।। म.न.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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