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गाषा: १०१५-१०१६
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तिलोयपागली पातानि - पपडीओ', लहिर • पहविस्सहाव-सलाई। निम्नान' उन्णयाग, अंगोवंगाण बंसचा पासा ॥१.१५॥ पर-तिरिया र जागा बुक्स-सोक्स-मरणादि । कालराय • गिपन्य, अंग • गिमिस पति तु ॥१०१६॥
। मंग-गिमित गर्द। म :-जिससे मनुष्य और तियंञ्चोंके निम्न एवं बनत अंग-उपागों के दर्शन एवं स्पांसे वासादि तीन प्रकृतियों मोर रुधिरादि सात स्वभावों ( घातुओं ) को देखकर तोनों कालोंमें उत्पन्न होने वाले मुख-दुःख तमा मरण-आदिको जाना जाता है, वह अम-निमिन नामसे प्रसिद्ध है ।।१०१५-२०१६॥
प्रङ्ग-निमित्तका कपन समाप्त हुआ। गर-तिरिमाण दिलित. सुर मोद्धा बुमस मोनादि कासराय • गिप्प, चं जागा सर-णिमिरी ॥१०१७॥
। सरमित गदं। प:-जिसके द्वारा मनुष्यों और तिर्यस्योंके विचित शब्दोंको सुनकर कासत्रयमें होने काले दुःख-मुखको जाना जाता है, वह स्वर-निमित्त है 11१०१५॥
। स्वर-निमितका कथन समाप्त हुमा । सिर-मुह-कंठ-प्पषित, तिल-मसय-परिमाणं । नं लिय-काल-सहाई', जागह तं पंजग - गिमित ।।१०१।।
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जग-गिमिरी गई। भ:-सिर, मुख और कण्ठ मादि पर तिल एवं मसे आदिको देखकर सीरों फालके सुखाधिक को जानमा, सो व्यजन-निमित्त है ।।१०१८॥
। व्यञ्चन-निमित्तका कथन समाप्त हुआ।
....... म. तिहारण उहवालं। ४.८.रा
परिदोमो। २...ब.क.प. य. न. पा ..स.क. ज. प. उ. . प. उ. मा। .प.ब.क.अ.म.न.पादि ।