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सपा : १०११-१०१४] पतलो महाहियारो
[३.३ निमित्त-ऋषिके अन्तर्गत नभ, भौम आदि मिमितोंका निरूपण--: गइमितिकारिखो, एभ - भवमंग - सराह जयं ।
लक्क्षण विहं तर, अट्ट - वियहि विवरिख ॥१०११॥
परं:-नैमित्तिक ऋद्धि नभ, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण. चिल्ल ( छिन्न ? ) मोरा स्वप्न इन पाठ भेदोंसे विस्तृत है ॥१०१.
रपि-समि-गह-पाहुबीन, उपयत्यमणाविआई' बट्टणं । कालतय-बुक्ल-सुहं, आणइ तं हि नह - णिमित्त ॥१०१२।।
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। मासेमामस गई ।
प:-सूर्य, चन्द्र भौर प्रहमादिके उदय एवं प्रस्त आदिकोंको देखकर जो कालत्रयके . दुख-सुख आदिका मानना है, वह नम-निमित है।१०१२।। । ... ,
। ननिमित्तका धन समाप्त हुना। . धन-सिर-णिड-साल पहुवि-गुणे भाविदूग भूमीए । मं आणइ सत्य-अदित, 'तम्मयम-कणय-रणव-पमुहाणं ।।१०१३।। दिस-विहिस-अंतरेस, चउरंग - बलं दिवं च बढ्छ । जं जाणा जपमजयं, तं भउम - निमिसमुदि ॥१०१४।।
। असम-णिमित्तं गई ।।
पर्व: पृथिवीमे धन (सान्त्रता ), सुषिर ( पोलापन ), स्निायता और रूक्षना आदि गुणोंका विचार कर धो तांबा, लोहा, स्वर्ण एवं चांदी आदि घासुओं की हानि-वृद्धिको तथा दिशाविदिशाबोंके अन्तरालोंमें स्थित चतुरंगवलको देखकर जो जय-पराजय को भी जानता है, उसे भीमनिमित्त कहा गया है ।।१०१३-१०१४॥
। भौम-निमित्तका कषन समाप्त हुआ।
१..ब. क. ज. प. उ धादि। २... ब. क. अ. प. ३, तम्या ।