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३०२ | वा. आचार्य टिका १००७-१०१०
दश-पूविस्व ऋद्धि
रोहिणि पहूदीण महाविज्जागं देवबाच पंच तथा ।
अंगु बनाई, 'खुल्लय बिज्जाण सत सया ||१००७॥
पुति ।
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एकूण पेसचाई, मग्गंते बसम युव्द पढम्म । नेच्छति संजयंता, साओ जे ते' अभिन्नवसी ॥१००८ ॥
१.८.
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- दस पुत्रं पढ़ने में रोहिणी आदि महाविद्याओं के पांचसो और अंगुष्ठ-प्रसेनादिक ( प्रश्नादिक) शुद्र (लघु) विद्यानोंके साहसी देवता माकर आज्ञा मांगते हैं। इस समय जो महर्षि जितेन्द्रिय होनेके कारण उन विद्याओं की इच्छा नहीं करते, वे 'विद्याधर बमरा' पर्याय नामसे भुवनमें प्रसिद्ध होते हुए अभिपूर्वी कहलाते हैं। उन ऋषियोंकी बुद्धिको दस पूर्वी जानना चाहिए 11१००७-१००६ ॥
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। दस-पूत्व ऋद्धिका कमन समाप्त हुआ ।
- पूर्ववद्धि
सपंलागम - पारमया, सुबकेवलि ग्राम सुप्पसिया ने । एवाण बुद्धि
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सुषमेसु सुव्यसिद्धा, विजाहर-समय-गाम-पज्जामा । सायं मुमीण बुढो, बसपुम्बी नाम बोद्धव्या ॥ १०० ॥
१ दसय्बो गया ।
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रियो चोदसपुव्विति मामेण ॥। १०१० ॥
| चोट्स-पुवित" गवं ।
अर्थ :- जो महवि सम्पूर्ण आगमके पारंगत हैं तथा तमेवली नामसे सुप्रसिद्ध हैं उनके atesपूर्वी नामक बुद्धि ऋद्धि होती है ।। १०१० ॥
। चौदह - पूर्वित्व ऋद्धिका कमन समाप्त हुआ ।
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क. ज. य. न. विश्वास । २. ४. व. क. ज. प. उ.
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