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तिलोयपणती
[ गाथा : ५१-१५५
इन्द्रवजा-- एवं पहावा भरहस्स लेसो घाम-पड़ती' परम विसंता।
सव्वे जिणिदा बर-भध्व-संघस्सप्पोरिषद मोर मुहार ? को हट
म :--उपर्युक्त प्रभावसे संयुक्त वे सब तोकर भरत क्षेत्रमें उत्कृष्ट धर्म-प्रवृत्तिका उपदेश ___ देते हुए उत्तम भध्य-समूहको आरमासे उत्पन्न हुप्रा मोक्ष-मुख प्रदान करें ||१५||
ऋषभादि तीर्थंकरोंका केनिकाल– पुम्बाममेक • जमलं, बासागं कणिवं सहस्सेग । उसह - जिभिवे कहिब, केलि - कालरस परिमाचं ॥५२॥
उसह पू० १ल 11 रिणवास १०००॥ प:-ऋषभ जिनेन्द्र के केवलिकासका प्रमाण एक हजार वर्ष कम एक लास पूर्ण कहा गया है ।।५।।
बारस बम्बर • समाहिय-पुम्बंग-बिहीम पुज्य-इगि-सबलं । केपलिकाल - पमान, अणिय - जिभिये पुनय 11६५३||
पणिय पू० १ ल ॥ रिण-पूर्वाग १ । व १२।
:-अजित जिनेन्द्र के केवलिकालका प्रमाण बारह वर्ष और एक पूर्वाज कम एक मास पूर्व बानना चाहिए ॥१५३||
बोहस-न्दर - सहिय-पर-युग्वंगोण-पुम्ब-इणि-सतं । संभव - निमस्स भनिन, केवलिकालस्स परिमाणं ||५४॥
संभव पू० १ मा रिण-पूर्वाग ४१ १४ वस्य । म :--सम्भव जिनेन्द्रका केलिकाल चौवह . पार पूर्वाङ्ग कम एक लाख पूर्व प्रमाण कहा गया है ||४||
अट्ठारस • बासाहिय • अर-'पुलंगोग-पुष-गि-साबलं । फेवलिकाल • पमाणे, नानगाहम्मि खिहि ॥५||
गंवरण पू० १ न ।। रिए पूर्वाग म्। वस्स १८॥ १. ज.म. प्पमति । २...ब.स. तुप्पोस्थिव । ३. ८. स. प. पुर्णमास।