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________________ २८८ ] तिलोयपणती [ गाथा : ५१-१५५ इन्द्रवजा-- एवं पहावा भरहस्स लेसो घाम-पड़ती' परम विसंता। सव्वे जिणिदा बर-भध्व-संघस्सप्पोरिषद मोर मुहार ? को हट म :--उपर्युक्त प्रभावसे संयुक्त वे सब तोकर भरत क्षेत्रमें उत्कृष्ट धर्म-प्रवृत्तिका उपदेश ___ देते हुए उत्तम भध्य-समूहको आरमासे उत्पन्न हुप्रा मोक्ष-मुख प्रदान करें ||१५|| ऋषभादि तीर्थंकरोंका केनिकाल– पुम्बाममेक • जमलं, बासागं कणिवं सहस्सेग । उसह - जिभिवे कहिब, केलि - कालरस परिमाचं ॥५२॥ उसह पू० १ल 11 रिणवास १०००॥ प:-ऋषभ जिनेन्द्र के केवलिकासका प्रमाण एक हजार वर्ष कम एक लास पूर्ण कहा गया है ।।५।। बारस बम्बर • समाहिय-पुम्बंग-बिहीम पुज्य-इगि-सबलं । केपलिकाल - पमान, अणिय - जिभिये पुनय 11६५३|| पणिय पू० १ ल ॥ रिण-पूर्वाग १ । व १२। :-अजित जिनेन्द्र के केवलिकालका प्रमाण बारह वर्ष और एक पूर्वाज कम एक मास पूर्व बानना चाहिए ॥१५३|| बोहस-न्दर - सहिय-पर-युग्वंगोण-पुम्ब-इणि-सतं । संभव - निमस्स भनिन, केवलिकालस्स परिमाणं ||५४॥ संभव पू० १ मा रिण-पूर्वाग ४१ १४ वस्य । म :--सम्भव जिनेन्द्रका केलिकाल चौवह . पार पूर्वाङ्ग कम एक लाख पूर्व प्रमाण कहा गया है ||४|| अट्ठारस • बासाहिय • अर-'पुलंगोग-पुष-गि-साबलं । फेवलिकाल • पमाणे, नानगाहम्मि खिहि ॥५|| गंवरण पू० १ न ।। रिए पूर्वाग म्। वस्स १८॥ १. ज.म. प्पमति । २...ब.स. तुप्पोस्थिव । ३. ८. स. प. पुर्णमास।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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