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गाषा: E४-६५० ] सत्यो महाहियारो
[ २८७ मानसि-महमानसिया, जया य विजपापराविनायो। बहुरूपिणि दी, परमा - सिगायिनीयो ति even
म:- १ पक्रवरी, २ रोहिणी, ३ प्राप्ति, ४ वमबला, ५ वजांकुना, ६ अप्रतिपषवरी, ७ पुरुषदता, ८ मनोगा. काली, १० ज्वालामालिनी. १ महाकाली, १२ गौरी, १३ गान्धारी, १४ बैरोटी, १५ अनन्तमती. १६ मानसी, १७ महामामसी, १८ अया. १६ विवश २० अपराजिता. २१ बहरूपिणी, २२ फूष्माण्डो. २३ पचा मोर २४ सिहायिनो ये यक्षिणियाँ श्री मनः ऋषभादिक चोदीस तीर्षकरों के समीप रहा करती हैं.४६४६६४८।।
बिनेदभक्तिका फल
बिनन्दमा
बसन्ततिमकम्पोयूस - विझर • निहं जिन -चंब • वागि,
सोळण बारस गणा 'पिय - कोहए। पि अत - अगसेवि - विद्धि - सद्धा -
शिवंति फम्म - परलं असंक्षसेमि ।।१४६।। -:-जैसे बन्दमासे अमृत भरता है, उसी प्रकार मिनेन्द्र रूपी पन्नाको वायोको अपने-अपने कोठोंमें सुनकर वे भिन्न-भिन्न जीवोंके बारह पण निस्य अनन्त-गुरवेणीरूप विशुबिसे संयुक्त बरीरको धारण करते हुए प्रसंख्यातथेगोरूप कर्म-पटसको नष्ट करते हैं ||४||
इनवना
भत्तीए आसत्त-मणा जिणिव-पायाधिवेसुनिसियस्था । पारी-कार्षण पदमारणं, जो भाषिकाल पविभावयति ॥१५॥
मर्थ :-जिनका मन भझिमें पावता-और जिन्होंने जिनेन्द्र-देको पावारविन्दोंमें आस्था (वा) रखी है के मध्य जीव मतीत, वर्तमान मोर भावी सालको भी नहीं मानते हैं । अर्थात् भक्ति वश में कौन है, कौन था और क्या होऊँगा' इस विकल्पसे रहित हो जाते हैं ।।९५०11
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