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तिलोयपणती
[ गाथा : ६२८-११ भ:-१ न्यग्रोध, २ सप्तपर्ण, ३ शाल, ४ सरल, ५ प्रियंगु, ६ प्रियंगु, ७ घिरीष, ८ नागवृक्ष, मा ( बहेड़ा), १. पूलिपसाण, ११ तेंदू. १२ पाटल. १३ जम्बू, १४ पीपल, १५ दधिपणं, १६ नन्दी, १७ तिलक, १ साम्र, १६ ककेलि (अशोक), २० पम्पक, २१ बकुल, २२ मेषशृङ्ग, २३ धव और २४ शाल, ये तीर्घकरोंके प्रशोकवृक्ष है मटकती हुई मोतियों की मालाबों और पटा-समूहादिकसे रमणीक sersों एवं की
खास! सब शोक वृक्ष अत्यन्त शोभायमान होते हैं ॥९२५-९२७।।।
निय-णिय-सिंग-उबएहि, पारस-गुणियेन सरिस उपहा ।
उसह - जिन • पहुवीगं, असोय • काला विरामंसि ॥१२॥
प:-ऋषभादिक तीर्थकरोंके उपर्युक्त चौयोस अशोकवृक्ष पपने-अपने जिनमकी ऊबाईसे बारह गुरे ऊंचे शोभायमान है ॥६२८||
कि पपपणेण हमा, बढळूनमसोय • पादचे एथे। णिय - उगारण - बसु, ग रमरि चित सुरेसस्स II१२६।।
वर्ष:-बहुत वर्णनसे क्या ? इन प्रशोक वृक्षों को देखकर इन्द्रका भी वित्त पपने उखानवनोंमें नहीं रमता. है ॥२६॥
तीन छत्र प्रतिहार्यससि - मंटल - संकासं, मुत्तावाल - पयास • 'संवृत्त ।
छत्तत्तयं विरापदि सव्वाचं तित्य . 'कत्ताणे ॥३०॥
प' :--चन्द्र-मण्डल पल मोर मुक्ता समूहों के प्रकाणसे संयुक्त तीन पान सब तीर्थकरों के ( मस्तकों पर ) शोभायमान होते हैं ।।६३०।।
सिंहासन प्रातिहार्यसिंहासन मिसाल, बिसुर - फलिहावतेहि निम्मनि ।
वर-रमग-णियर-सधि, को सका परिण तागं ॥३१॥
पर्ष:-निर्मल स्फटिक-पाशारणसे निर्षित और उत्कष्ट रस्नोंके सपूइसे सथित उन तीपंकरोंका जो विशाल सिंहासन होता है, उसका वर्णन करनेमें कौन समर्प हो सकता है ॥३३॥
१. द. क, ज. प. च. रहो । २. ब. क. भ. प. ३.
कुत्ता। 1.ब. म. सत्तारं ।