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________________ पाषा: १२४-१२७ 1 पउत्थो महाहियारो [ २८१ म:- तीपंकरोंके माहात्म्यसे संख्यास पोजनों तक वन प्रदेश असमय में ही पत्रों, फूलों एवं फलोंसे परिपूर्ण समृद्ध हो जाता है। २ फोटों और रेती आदिको दूर करती हा सुखदायक बादु प्रवाहित होती है, ३ जौष पूर्व वेरको मोड़कर मंत्री-मावसे रहमे लगते हैं। ४ उसी भूमि चरणतल सहा स्वच्छ एवं रस्नमय हो जाती है; ५ सौधर्म इन्टको बाशासे मेषकुमार देव मुगन्धित उसकी बर्षा करता है। ६ देव विकियाते फलोंके भारसे नम्रीभूत पालि और जो आदि नस्यकी रचना करते है। ७ सब जीवोंको नित्य पानन्द उत्पन्न होता है; ८ वायुकुमार देव विक्रिमासे सोतल-पवन चलाता है। कूप भोर तालाब आदिक निर्मल जलसे परिपूर्ण हो जाते हैं; १० आकाश धुओं एवं उल्कापातादिसे रहित होकर निर्मल हो जाता है; ११ सम्पूर्ण जीव रोगपाषाओंसे रहित हो जाते है, १२ यक्षेन्द्रोंके मस्तकों पर स्थिस और किरणोंको माति उफज्वल ऐसे चार दिव्य धर्मबोको देखकर मनुष्यों को पाश्चर्य होता है तथा १३ तीर्थकरोंकी पारों दिशाओं (विदिशाओं) में सम्पन स्वर्ण-कमल, एक पादपीठ और विविध दिम्य पान-सन्य होते हैं S TTE TEENSE चाँतीस प्रतिमयों का वर्णन समाप्त हुप्रा । भशोक वृक्ष प्रानिहायका निरूपण-- अॅसि साल - मूले, उप्पलं जाण केवलं जागं । उसाह - प्यादि- जिणाएं, से चिय प्रसोय-कल सि २४॥ प्रपं:-ऋषभादि तीर्थंकरोंको जिन वृक्षों के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न हुभा है में ही पशोकवृक्ष है ॥२४॥ गग्गोह - सत्तपणं, सालं सरलं पियंगु तन्वेष । सिरिसं भागतर वि म, प्राला पूतोपलास तवं ॥२५॥ पाइस-चंद्र पिप्पल - वहिबगो मंदि-तिलय-पूवा । पति-चंप • घडल, मेससिंग' पर्व सासं ॥२६॥ सोहति असोय - तरू, पल्लव - कुसुमागवाहि साहाहि । संबंत • मुत-बामा, घंटा • जामावि - रमपिन्ना HE२७॥ १.प.क. स. किकस्लि , म. म. कस्सि। २. मेहबरम, ... य. ३. मेजयसिंग ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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