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________________ २५० ] [ गाबा ε१६- १२३ इन्द्र एवं चक्रवर्ती प्रश्नानुरूप पर्व के निरूपणार्थ यह दिव्य ध्वनि शेष समयों में भी निकलती है। महू दिव्यध्वनि भव्य जीवोंको छह-द्रष्य, नौ-पदार्थ, पाँच अस्तिकाय और सात तत्वोंका निरूपण नानाप्रकारके हेतुओं द्वारा करती है । इसप्रकार घातिया कर्मो के क्षयसे उत्पन्न हुए महान् भावयंअनक थे ग्यारह अलिय सीर्थंकरोंको केवलज्ञान उत्पन्न होने पर प्रगट होते हैं ।। १०६ - ६१५।। श्री SE BY PD तिलोयपण्णत्ती देवकृत तेरह श्रतिशय जोवने वनं । माहत्येन जिमानं संखेनेसु च पल्लव कुसुम फली भरिदं प्रायदि अकासम्म ॥ ११६ ॥ - कंटय- सक्कर-पहूति, अवणिता वादि सुरको बाऊ । मोसून पुण्य वेरं जीवा धति मेसीसु ॥१७॥ बम्पण-तल- सारिवा, रमणमई होदि तेतिया भी । गंधोबड वरिसह, मेघकुमारो पि सक्क आणाए ।।११८ ॥ · फल-भार-णमिव-साली जवादि-सहसं सुरा बिकुवंति । समा जीवार्ण, उपनदि विमानंद ॥१६॥ बायदि विक्किरियाए वायुकुमारो हु सोपलो पवणो । तवायावीणि निम्मलसलिसेच पुण्माणि ॥१२०॥ 4 - धूमुक्कपण पहूदीहि विरहिवं होदि णिम्मलं यनं । रोगावीणं बाधा, ण होंति सक्लान जीवानं ॥२१॥ १. ब च संविधा | जक्लिव मत्पतु, किरगुज्जर- दिग्व धम्म-वाणि । व संठियाई' बचारि जणस्स अरिया || १२२ ॥ 1 पण चदिसासु, कंचन - कमलामि तिरथ-कताएं । एक्कं च पापीढे अच्वण-दच्चाणि शिव्य-विहिवाणि ॥२३॥ | चोलीस अइसया समता ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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