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________________ [ २७६ गाषा: 6t-११५ पतस्पो महाडियारो सम्बाहि - मुर - द्विपसं, अच्छापतं 'अपम्हरिच। बिग्माणं सितं, सम - मह - रोमत्तगं मरोरम्मि HEDEI अट्टरस • महामासा, खुल्लय-भासा सपाइ सत्त-तला । अक्सर - मणक्सरप्पय सगी-जीवाण सयल-मासाओ ।।६१०॥ एरासि भासागं, सालब - बंतो? • कंठ - 'वाधारे । परिहरिय एक्क - काल, भव्य - लले बिम्ब-भासितं ॥११॥ Kastus:....मादल विशाल पु रा ताण । हिस्सरवि पिवमानो; विसझगी जा 'जोयणर्य ||२|| अवसेस - काल - समए, गगहा - देविंद - चाकपट्टोणं । पहाणक्यमत्य विम्यामुषी सत्त · भंगोहि ॥१३॥ थाहरुव - गव - पयल्थे, पंष्टौकाय - सस - तस्यामि । णामाविह् - हेडहिं, विम्बली' भगा भवामं ॥१४॥ “धादिक्खएन जावा, एक्कारस मक्सिया महरिया । एवं तित्ययराणं, केवलणाम उप्पणे ॥१५॥ प:-अपने स्थानसे चारों दिशाओं में १ एकसौ योजन पर्यन्त सुभिखता, २ आकाचगमन, ३ महिंसा ( हिंसाका प्रभाव ).४ भोजन एवं ५ उपसर्ग का अभाव, ६ सबकी ओर मुख करके स्थित होना, ७ छाया नहीं पड़ना, ६ निनिमेष दृष्टि, ६ विद्यापोंको ईमाता, १० शरीरमें नषों एवं वालों का न रहना, पठारह महाभाषा, सातम्रो खुद-भाषा तथा मौर भी जो संशी जीवोंकी समस्त अभार-मनारात्मक भाषाएँ हैं उनमें तालु दाँत.ओष्ठ और कण्ठके व्यापारसे रहित होकर एक हो समय { एक साथ ) भव्य जनोंको दिव्य उपदेश देना । भगवान् जिनेन्द्रको स्वभावतः प्रस्खलित तथा अनुपम ११ दिम्प-ध्वनि तीनों सन्ध्याकालोंमें नव-मुहतों तक निकलती है और एक योजन पर्यन्त जाती है। इसके अतिरिक्त गणपरदेव, t. व. प. प. न. पम्हविर्त. ब, अपहरं विस। २.६. ब. क. मा. प. उ. गावारो। ३.प. उ. जोपणं । ४. द. *.क.ब. य. च. पाहारगरूपमत्वं। ५.१.प. . ज. प. पयरयो । ६.५. प. य. पताल, क. उ. स्थाणि। ७. . हिमभरिए। ८. .. . पाकिसपण य ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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