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________________ गाषा : ६४-६५ ] पस्यो महाहियारो [ २५३ २४ ॥ २३ २२ ॥ २१ ॥ २९ | १६ | ६१८ ६ | ६ | | १५ | १४| | | | ८ . E w:--नितीम पोठोंक पर विविध प्रकारके रलोंसे खपित तीसरी पीठिकाएं होती है। इनकी ऊंचाई अपनी-अपनी दूसरी पीठिकाओंफी ऊंचाई सहश होती है |८६३। रिणय-आविम-पौदारणं, विस्वार-चउत्प-भाग-सारिया। एवागं विस्थात', 'तिउग-कबे तस्थ समहिए परिही १८६४॥ ८४८ [४८४८४६४८ | ४८.४८ ४९४८ [४८ [४] २४।२३ / २२ १२ | १४ | te/ke | { ४१६/| ४ | ३ | प्रपं:-इनका विस्तार अपनी प्रथम पीठिकाओंके विस्तारके बतुर्थ भाग प्रमाण होता है और तिगुणे विस्तारसे कुछ अधिक इनको परिधि होती है ।।१४।। साणं विणयर - मंडल - समबट्टाणं हवंति अदृट्ट। सोवामा रपममया, परसु विसासु 'सुहम्पासा IIE५॥ । तबिय-पीवर समता । म। सूर्य मण्डल सहमा गोल वन पीठोंके चारों भोर रलमय एवं सुखकर स्पपांवाली माळ-पाठ सोवियों होती है 118 1 तृतीय पीठिकाओंका वर्णन समाप्त नुमा । १... , २, मित्यारो। २.३. उ. तडण। ३. इ. स. ज. पा. मुाप्पा। 5. सुहमासू, उ.दुह-उपपासू।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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