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गावा : ९८१-
तिलोयपणती द्वितीय पीठका विस्तार
बोसाहिय-सयकोसा, उसह-विणे विविय-पोव-विस्तारा । पंचूमा छाउनी, भजिदा कमसो ममि - पन्नत IIEI पास • जिणे पणुषीसं. अळूचं ऐसएहि मवहरिता । पंच शिवम वीरजिन, पबिहत्ता अताहिं 1८६२।।
।विनिम-पीडा समत्ता। :-ऋषभनाथ जिनेन्द्र के समवसरणमें द्वितीय पीठका विस्तार बघामबसे भाजित एक सौ बीस कोस प्रमाण वा । पश्चात् इसके आगे नेमिनाथ पर्यन्त क्रमशः पांच-पांच माग कम होते भाये। पाय जिनेन्द्रके यह विस्तार मरठ कम दोसोसे भामित एदीस कोस तपा पीर जिनेन्द्रके अड़तासीससे भाषित पाप कोस प्रमाण या ९१-८६२|
। वितीय पीठोंका वर्णन समाप्त हुमा ।
तीसरी पौठिकानोंकी ऊंचाई एवं विस्तारतानोवार तरियाई, चोदाई विबिह-रयाण-सराई। निय-जियाब- पोचेह-समा ताम 'सन्हा IIEI
१. स. स. पोलम्वेव। ... सोश, क. उ.
दो, क. उन्हो ।