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गाचा ! ८८९-९०]
सउदो महाहियारो
[ २७१
६०००।५७५०|५५००।५२५०11००० [४७५०|४५००1४२५०1४०००।
३७५०/३५०० / ३२५० } २०:०४ २०५० १२५०० | २२५० / २००० / १७४ |
प:- ऋषभनाथके समवसरणमें उनकी (दूसरी पोठाको ) मेखलाओंका विस्तार माठसे मालित छह हमार धनुप था । इसके प्रागे नेमिनाप पर्यन्त क्रमशः दो सौ पचास-दो सो पचास माग कम होता गया है । पार्श्वनाम [ के समवसरण में द्वितीय पीठको मेखलाओं ] का विस्तार बाठसे भाजित सह सो पम्चीस धनुष और वीरनाए मगवानके यह विस्तार दोसे भाजित एकसी पीस धनुष प्रमाण था ।1८८६-८८७।।
सोपान एवं यजाओंका वर्णन-- तागं कमयमयाणं, पौढाणं पंच - बग्ण - रयणमया। समाहा सोवाया, बेहो चउ - बिसामु अट्टह ८८॥
।८।। अर्थ :--उन स्वर्णमय पीठोंके ऊपर पढ़नेके लिए चारों दिशामों में पांच वर्षके रलोसे निमित समान माकार वाले पाठ-आठ सोपान होते हैं ।।८८८।।
केसरि-सह-सरोह पक्कंबर-नाम-गर-हत्यि-धया। मणि - बम • संबमाणा, राते पिदिय • पीवे ॥१६॥
:-द्वितीय पोठोंके ऊपर मणिमय स्तम्भोंपर लटकती हुई सिंह, बल, फमल, क. बस्त्र, माना, गरुड़ मोर हाथो इन चिह्नोंसे बुक्त ध्वजाएं शोभायमान होती है ।।८।।
अष-धन गब-लिहिलो, मध्यन-दम्माणि 'मंगसानिमि ।
बेट्टाति बिविय - पीके, को सक्का ताण बन्दु ॥॥
प्र :-द्वितीय पीठपर जो धूपघट, नव निषियो, पूजन द्रव्य और मंगलद्रव्य स्थित रहवे है, उनका वर्णम कर सकने में कौन समपं है ? ||१०||
१. . . क. ब. म. र. धना ।