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________________ भाषा :-१.] वउत्थो महाहियारो Arijन्ध, अन्याय पारी एक शून्य, तीन, न्य, नी, शून्य, गून्य, छह और एक अंक प्रमाण अर्थात् १६००६०३०१२५००० योजन मनुष्यलोकका क्षेत्रफल है ।। ८ ।। गोलक्षेत्रको परिधि एवं क्षेत्रफल निकालने का विधानबासमती रस-गुभिवा, करणी परिही 'ध मंडले लेते। "विश्वंभ-बउमभाग-प्पहदा सा होदि सेसफल ।। ६ ।। वर्ष :-पासके वर्गको इससे गुणा करनेपर जो गुरणनफल प्राप्त हो उसके वर्गमूल प्रमाण गोलक्षेत्रकी परिधि होती है। इस परिधिको ग्यासके चतुशिसे गुणा करने पर प्राप्त गुणनफल प्रमाण उसका क्षेत्रफल होता है ।। ६ ।। विशेषा:-मनुष्यलोक वृत्ताकार है; जिसका व्याम ४५ लान योजन है। इसका वर्ग ( ४५ लाख ४४५ लास)१०-२०२५००००००००००० वगं योजन होता है । इसका वर्गमूल अर्थात् परिधिका प्रमाण /२०२५०००००००००००-१४:३०२४६ वर्ग योजन है और जो अवशेष रहे वे छोड़ दिये गये हैं। परिधिxpersx००९००° श्यामका चतुर्थाश =१६.०९०३०१२५००० वर्ग योजन मनुष्यलोकका क्षेत्रफल प्राप्त होता है। __ मनुष्यलोकका पनफलअदुवा सुन्न, पंच-इगि-गमण-ति-मह-व-सुष्णा । अंबर-मुक्केवकाई', अंक-कमे सस्त विवफलं ॥१०॥ १६.०१ ०३०१२५००००००० लिइवेसो गदो ॥१॥ वर्ष :-आठ स्वानोंमें शून्य, पोष, दो, एफ, शून्य, तीन, शून्य, नो, शून्य, शून्य, छह और एक अंक क्रमशः रखनेपर जो राशि (१६००१०१०१२५०००००००० धन योजन ) उत्पन्न हो वह उस ( मनुष्यनोक ) का घनफल है ।। १० ।। विशेषाव :-( मनुष्यलोकका बर्ग योजन क्षेत्रफल १६००६०३०१२५०००) ४१००००० योजन बाहल्प - १६००१०३०१२.५०००००००० घन योजन धनफल प्राप्त हुमा । निर्देश समाप्त हुबा ।। १॥ 1.क.प्रति, ।। २... क. र. विभय । .क.उ. कोहि । ४..... नवा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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