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________________ तिलोत [ गाथा : ६-८ अर्थ :---निर्देशका स्वरूप, जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकी चण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्करा - ढोप, इन द्वीपोंमें स्थित मनुष्योंकि भेद, संख्या, अल्पबहुत्व, गुणस्थानादिकका विविध भेदसि युक्त संक्रमण, आयु-बन्धनके निमित्तभूत परिणाम योनि-प्रमाण, सुख, दुःख, सम्यक्त्व-ग्रहणके कारण और मोक्ष जानेवालोंका प्रमाण । इसप्रकार जिनेन्द्र भगवान्के मुखरूपी कमलसे निकले हुए नर-जगप्रज्ञप्ति नामक इस चतुर्थ महाधिकारमें इन सोलह 122 २ ] मनुष्यलोककी स्थिति एवं प्रमाण तस-बाली-बहुल जित्ताअ खिदीअ उबरिमे भागे । अइबट्टो मनुज-जगो, 'जोयण-पणदाल-लक्स- 'मिक्समो ॥६॥ । जो ४५ ल । अर्थ :- चित्रा पृथिवीके ऊपर सनालीके बहुमध्यभागमें पैंतालीस लाख ( ४५००००० ) योजन प्रभात विस्तारवाला अतिगोल मनुष्यलोक है ।। ६ ।। मध्यलोकका बाहय एवं परिषि जग-मभावो उर्जार, तम्बहलं जीवणानि इगि-लक्वं । व चतु-युग - सिय-युग-डरेक्क्क कमेण तपरिही ॥७॥ | १ न । १४२३०२४९ । अर्थ:- -लोकके मध्यभागसे ऊपर उस मनुष्यलोकका बाहुल्य एक लाख ( १००००० ) योजन और परिधि क्रमशः नौ, चार, दो, शून्य, तीन, दो, चार और एक अंक (१४२३०२४९ योजन) प्रमाण है ।। ७ ।। मोट :- परिषि निकासनेका नियम इसी अध्याय की गाथा में दिया गया है। मनुष्यलोकका क्षेत्रफल - सुण-भगवण-पद्म-युग- एक्क-ख-तिय-सु-ण-हा-सुनं । टपकेश्क- जोबना त्रिय, अंक-कमे मणुब-लोय-खेतफलं ॥८॥ । १६००६०३०१२५००० । १. म. मोराण। २. ८. ब. क. क्विंभा ३ क च वि
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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