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________________ ४ ] तिलोयपणतो जम्बूद्वीपकी अवस्थिति एवं प्रमाण माणूस जग बहुमक्भे, विक्ायो होबि जंबुदीओ ति । एक-जोपण-लक्सं बिक्वंभ-जुदो [ गाया : ११-१५ सरिस बट्टो ॥। ११ ॥ म :- मनुष्यक्षेत्र के बहुमध्य भाग में एक लाख योजन विस्तारसे युक्त, वृत्तके सदृश और विख्यात जम्बूलीप है ।। ११ ।। जम्बूद्वीपके वर्णनमें सोलह अन्तराधिकारोंका निर्देश mkate nikáning og-fatt asztmata ▼ A हिमगिरि-हेमवता' महहिमवं हरि-बरिस मिसी ॥१२॥ विजलो विदेह - नामो', नीलगिरी रम्म बरिस- सम्मिगिरी । हेरन्नव विजय सिहरी एराबदो सि वरितो य ॥१३३॥ एवं सोलस- मेवा, जंबूदोषम्मि अंतरहियारा । एहि तान सरूपं, दाम आणुपुबीए ।।१४।। Y अर्थ :- जम्बूद्वीप के वर्णनमें जगती ( वेदिका ), विन्यास, भरत क्षेत्र, उस ( भरत ] क्षेत्रमें होनेवाला कालभेद, हिमवान् पर्वत, हैमवतक्षेत्र, महाहिमवान् पर्वत, रिक्षेत्र, निषधपर्यंत, विदेहक्षेत्र, नीलपर्वत, रम्यकक्षेत्र, रुक्मिपर्वत हैरण्यवत क्षेत्र, सिरीपर्वत और ऐरावतक्षेत्र इसप्रकार सोलह अन्तराधिकार है। अब उनका स्वरूप अनुक्रमसे कहता हूँ ।। १२-१४ ।। जगतीको ऊंचाई एवं उसका आकार - बेदि तस्स जगवी, अट्ठ चिप जोयणाणि उत्तुंगा । दीयं तन्हि नियंत, सरिसं होतॄण वलय-निहा ॥ १५ ॥ जो । अर्थ :- उसकी जगती आठ योजन ऊंची है, जो मणिबन्धके समान उस ड्रीमको, दलय अर्थात् कड़के सहन होकर बेह्नित करती है ।। १४ । १. द. न. हिमवदा । २. लामे ३. प. म. भेो। ४. व म. क. अंतर्राहयारो। ५.६, ब. ६.८.व. दे. च. बेटे पि । ७. व. दोषतमियितं व क. यौन रुं मलियत ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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