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गापा : ८७०-८७२ ] घउत्यो महाहियारो
[ २६३ अट्ठमए अविहा, बतरदेवा य किग्गर - पलयो ।
नवमे ससि रवि-पाबी, जोइसिमा जिप-रिपबिष्टु-मणा ॥७॥
मय:-पाठवें कोठेमें किभरादिक पाठ प्रकारके व्यन्तरदेव और नवम कोठेमें जिनेन्द्रदेवमें मनको निविष्ट करने वाले चन्द्र-सूर्यादिक ज्योतिषी देव बैठते हैं ।।८७०।।
सोहम्मालो प्रार- कप्पंता - रायगो पसमे । एक्करसे चक्कहरा, मंसिया पत्पिवा मणुवा ।।७१॥
पर्य :-दसवें कोमें सोधर्मस्वर्गसे लेकर अच्युत स्वमं परन्तके देव एवं उनके इन्द्र तवा ग्यारहवें कोठमें चक्रवर्ती, माण्डमिक राजा एवं प्रम्प मनुष्य बैठते हैं ।
बारसमम्मि य तिरिया, करि केसरि-बग्घ-हरिण' पहुवायो। मोसूख पुष धेरं, सत् वि सुमित • भाव - सुवा ।।६७२॥
। गण-विण्णासा समसा। म:-बारहवें कोठेमें हाथी, सिंह. घ्याघ्र पोर हरिणादिक लियंञ्च जीव बैठते हैं। इनमें पूर्व वरको छोड़कर पत्र भी उत्तम मित्र भावसे संयुक्त होते हैं ।।८७२।।
[ समवपारण विद्य पृष्ठ २६४ पर देखें ]
। गणोंकी रचना समाप्त हुई।
1. ६. रिती।