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तिलोयपणाती
[ गाथा : ८७३
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पांचवीं वेदोआह पंचम-वेदोओ, हिम्मल-फलिहोपलेहि सरायो। निय-णिय-उत्थ-साला-सरिन्छ - उच्नेह-यहुदीओ HE७३॥
। पंचम-चेवी समत्ता । मर्च':-इसके अनन्तर निर्मल स्फटिक पाषाणोंसें विरचित और अपने-अपने चतुर्थ कोटके सदृश विस्तारावि सहित पांचवीं वेदियां होती हैं ।।८५३।।
पांचवों वेदोका वर्णन समाप्त हुआ।