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________________ २६२ ] तिलोयपणतो [ गाया : ०६५-६६ समयसरण गत चारह कोठोंमें बंटने वाले जीवोंका विभागबेटुति 'बारस - गणा, कोट्ठानमंतरेसु पुष्यापी । पुह पुह पवाहिणेनं गलाण साहेमि विष्णासा ।।६।। मर्ष :-इन फोठोंके भीतर पूर्वादि प्रदक्षिण-कमसे पृथक-पृथक् बारहमण बैठते हैं । इन गणों के विन्यासका कपन आगे करता है ।।६।। अक्सोग - महापालिकाधी -सीHREATENEHATT * HERE 'गनहर - देष - प्पमुहा, कोर्ट परमम्मि खेति ॥८६॥ प:-इन बारह कोठार्मेसे प्रथम कोठेमें प्रक्षीणमहानसिक ऋद्धि तथा सपिरामब, सीराखब एवं अमृतानवरूप रस-ऋद्धियोंके धारक गणधर देवप्रमुख बंठा करते हैं ।।८६६।। विवियर्याम्म फलिह-भिची-अंतरिके कप्पवासि-वेवीओ। तविम्मि अग्नियाओ, 'साषायामो मिनीराम ।।८६७॥ अर्थ:-स्फटिकमणिमयो दीवालोंसे ग्यपादित दूसरे कोठेमें कल्पयामिनी देवियों एवं तोसरे कोठेमें अतिशय विनम्र आपिकाएं और धाविकाएँ वैठती है 11 १७|| तुरिये जोइसिया, बेबीओ परम-भक्ति-मंतीओ। पंचमए विपिओ, चितर - देवाण देवीमो ॥६॥ प्रम:-पतर्थ कोठे परम-भक्तिसे संयुक्त ज्योतिषी देवों की देवियों और पाचरें कोठेमें म्यन्तर देवोंकी विनीत देवियाँ मंठा करती हैं ॥१६॥ टुम्मि विणवरमान-पुसलाको भवरणमासि-देवीमो । सत्तमए जिण • भत्ता, वस - मेवा भाषणा देवा ।।८६६।। म: छठे कोठमें जिनेन्द्रदेवके अजनमें कुशल भवनवासिनी देवियां और सातवे कोठेमें दस प्रकारके जिन पक्त भवनवासी देव बैठते हैं ।।६।। १. क. गहाहस, ८, ज. य. हिरमणा', प. उ. रिहिंगणाई। र.....य, व, मिवाभि। शेक्सभो। ३. मगहरवेद। ४.८, ज, म, सावश्यापो मि निखिदार्श, .. साबमामा दिखियामो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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