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________________ महाहियारो [ २५६ १२ २४ | २३ | २२ | २१ १९ | १६ | १७ | १६ | १५ १४ | १३ २०६२६० २८८ २०८ २०० २८८ २०८२६० २०६ २०० २६० २८० | २८० |||||| २ / २ / गाया : ८९०-२६२ ] 5 ७ ११ १० 2 २६८ | २६० | २६० | २६८ | २६८ पर्थ :-- वृषभनाथ मराट चौबीस कोस प्रमाण था इसके प्रागे नेमिनाथ पर्यन्त क्रमशः एक-एक कोस कम होता गया है ॥५६॥ पणवीसाहिय अस्सय पंडा बत्तीस 'संविहत्थाय । पासम्म वड्डमाने, जय हिंद पणुवीस-अहि-यं ॥ ६६०॥ - |२१|११४] मगुणमाणं मणो । - ५ * | | | | | २८८ २८८ २८८ २०८ । तुरिम-साला समता 1 पर्थ :- भगवान् पानायके समवसरण में कोटका विस्तार लोससे विभक्त हसौ पच्चीस age और वर्धमान स्वामीके कोटका विस्तार नौसे भाजित एकसी पच्चीस धनुष प्रमाण था ||८६०।। · - | चतुर्थ कोटका वर्णन समाप्त हुआ । श्रीमण्डपभूमि ग्रह सिरि-मंडल-भूमी, अट्टमया 'अणुबमा मनोहरा । - रमण श्रंभ भरिया, मुत्ता - बालाइ * -कय-सोहा ॥। ८६१ ।। पर - :- इसके पश्चात् अनुपम मनोहर, उत्तम रत्नोंके स्तम्भों पर स्थित और मुक्ता जालादिसे शोभायमान काठमी श्रीमन्मभूमि होती है ।। ६६१ ।। निम्मल-पतिह- विणिम्मिय- सोलस-भितीन मंतरे कोट्टा । बारस तारणं उदओ, मिय-त्रिप्प-उदहि बारसह ||८६२ ।। १.५. बतख । २.१. समुषमा, म. म. म. मलमासमणी, क. मबमती उ. ४. ब. क.ज. प. च जानाक मोहा।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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