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________________ २५८ 1 तिसोयपती [ गाया: ५५६-६५६ ६००० | ५४०० | ४५०० | ४२०० | ३६०० । ३००० | २४०० | १६०० | १२०० १०० ६६० १८४० | ७२० । ६०० । ५४० | ४८० | ४२० | २६० | १०० २४० | १८० । १२० । २७ । २१ । - एक-एक स्तूपके बोचमें मकराकार सौ तोरण होते हैं इन स्तूपों की ऊंचाई इनके होती 11 अपने वश्यवृक्षों को बोहत हंद मानं, हा संप "भध्वाभिसेय णवण पाहिणं - - - - । चूहा समत्ता । अर्थ: इन स्पोको लम्बाई एवं विस्तारकं प्रमारण का उपदेश इस समय नष्ट हो चुका | भव्य जीव इन स्तूपोंका अभिक, पूजन और प्रदक्षिणा करते हैं ।।६५६ ॥ | स्तुयोंका कथन समाप्त हुआ । चतुर्थ कोट ततो वज्रस्थ साला हवे आवास- फलित-संकाला । मरगय मणिमय गोडर-दार चषकेण रमभिज्जा ।। ८५७।। १८. भय्याभो - · - - पर · अर्थ :- इसके आगे निर्मल-स्फटिक रत्न सहरा और मरकत - मरिणमय बार-गोपुर-द्वारोंसे रमणीय ऐसा चतुर्थ कोट होता है ॥१६५७।। तेसु वर - रमण बंद मंडल- भुज-वंडा कप्पवासिणो देवा । - जिणपाद - कमल-भत्ता, गोवर वाराणि रक्खति ।। ८५८ ॥ J को क उबएस कुष्वंति ॥ ६५६ ॥ - 4 अर्थ :- जिनके भुजदण्ड उत्तम रत्नमय दण्डोंसे मण्डित हैं और जिनेन्द्र भगवान्के चरणकमलोंमें जिनकी भक्ति है ऐसे कल्पवासी देव यहाँ गोपुर द्वारोंकी रक्षा करते हैं |१८५८ ॥ साला विक्संयो, कोर्स उधोस वसह साहि डीदि दुसष भजिदा एक्कूगा जब केमि-जिणं ॥५६॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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