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तिसोयपती
[ गाया: ५५६-६५६
६००० | ५४०० | ४५०० | ४२०० | ३६०० । ३००० | २४०० | १६०० | १२०० १०० ६६० १८४० | ७२० । ६०० । ५४० | ४८० | ४२० | २६० | १०० २४० | १८० । १२० । २७ । २१ ।
- एक-एक स्तूपके बोचमें मकराकार सौ तोरण होते हैं इन स्तूपों की ऊंचाई इनके
होती
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अपने वश्यवृक्षों को
बोहत हंद मानं, हा संप "भध्वाभिसेय णवण पाहिणं
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। चूहा समत्ता ।
अर्थ: इन स्पोको लम्बाई एवं विस्तारकं प्रमारण का उपदेश इस समय नष्ट हो चुका
| भव्य जीव इन स्तूपोंका अभिक, पूजन और प्रदक्षिणा करते हैं ।।६५६ ॥
| स्तुयोंका कथन समाप्त हुआ । चतुर्थ कोट
ततो वज्रस्थ साला हवे आवास- फलित-संकाला ।
मरगय मणिमय गोडर-दार चषकेण रमभिज्जा ।। ८५७।।
१८. भय्याभो
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पर
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अर्थ :- इसके आगे निर्मल-स्फटिक रत्न सहरा और मरकत - मरिणमय बार-गोपुर-द्वारोंसे रमणीय ऐसा चतुर्थ कोट होता है ॥१६५७।।
तेसु
वर - रमण बंद मंडल- भुज-वंडा कप्पवासिणो देवा ।
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जिणपाद - कमल-भत्ता, गोवर वाराणि रक्खति ।। ८५८ ॥
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को क
उबएस
कुष्वंति ॥ ६५६ ॥
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अर्थ :- जिनके भुजदण्ड उत्तम रत्नमय दण्डोंसे मण्डित हैं और जिनेन्द्र भगवान्के चरणकमलोंमें जिनकी भक्ति है ऐसे कल्पवासी देव यहाँ गोपुर द्वारोंकी रक्षा करते हैं |१८५८ ॥
साला
विक्संयो, कोर्स उधोस वसह साहि
डीदि दुसष भजिदा एक्कूगा जब केमि-जिणं ॥५६॥