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________________ पापा : ८५२-८५५.] चउत्थो महाहियारो [ २५७ उववरण-पहुदि सय्यं, पुष्वं विय भवन-भूमि-विक्संभो । णिय पबम-वेदि-वासे, वणिजे एकारसेहि सारिया ।.५३३५ TU ३३ |५७६१५२ ५७१५७६५७६ । भषणखिदी समता। म :- यहाँ उपवनादिक सब पूर्व सहश ही होते हैं । उपयुक्त भवन-भूमियोंका विस्तार ग्यारह से गुरिणत अपनी प्रथम वेदीक विस्तार सदृश है ।।८५२।। । भवनभूमिका वर्णन समाप्त हुआ। स्तूपोंका वर्णन-- भवण-खिदिम्पनियोस, रोहि पडि होति मल-जवा चूहा । जिग - सिम - परिमाहित अप्परिमाहि समाइया ।।५३॥ अर्थ :-भवन भूमिके पाश्वभागोंमें प्रत्येक गोपीके मध्यमें जिन ( महन्त ) और सिदोंकी अनुपम प्रतिमानोंसे व्याप्त नौ-नौ स्तूप होते हैं ।।८।३।। छसावि-विभव-असा, पम्वत-विचिरा-पय-वसालोला'। मर • मंगल - परियरिया, ते सम्वे विव्व - रवणमया ॥५४॥ वर्ष :-वे सब स्तूप त्रादि वैभवसे संयुक्त. फहराती हुई नजानों के समूहसे पञ्चल, पाठ मजल द्रव्योंसे सहित और दिव्य-रस्नोंसे निर्मित होते है ॥८५४॥ एक्सपकेसि धूहे. अंतरयं मयर - तोरणाम सयं । उन्हो 'यूहान, बिय - बेत्स - वुमान उदय - समं ।।८५५।। १. ६.प. य. वनामोगा। २. ८.०, क. भ. प. उ. पहारिण।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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