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तिलोयपणती
[ गापा:४८-८५१ परस-भूमि-भूसिलामो, वामो सीस-रंग-भूमीमो । मोहसिय - कानयाहि, पनच्चमाणाहि रम्मामो | |
। गट्टमसाला समता। अर्थ:-सर्व नाटयशालाएं पाच भूमियों ( अण्डों-मंजिलों) से विभूषित, बतीस रङ्गभूमियों सहित और नृत्य करती हुई ज्योतिषी कन्याओंसे रमणीय होतो हैं ।।४।।
1 नाटकालाओंका वर्णन समाप्त हुआ ।
चतुर्थ वेदीतपो पउत्प-वेदो, हदि णिय-पढम-वेनिया-सरिसा । परि बिसेसो मावण - देवा वाराणि रक्खंति ItE४६॥
। तुरिय-चेवी समता। भर्ष:- इसके प्रागे अपनी प्रथम वेदी सदृष्य चौथो वेदी होती है। विशेषता मात्र इतनी है कि यहाँ दारों की रक्षा भवनवासी देव करते हैं ।।४ELI
। पोमो वेदोका वर्णन समाप्त हुया ।
भवन-भूमियांसत्तो भवण-खिवीओ, भवणाई तासु रयण-रहवाई।
धुव्वत - घय -'वाई, घर - सोरण - तुग - गगराई ५०॥
मर्ष :-इससे प्रागे भवन-मूमियां होती हैं। जिनमें फहराती हुई ध्वजा-पताकापों सहित एवं उत्तम तोरण-युक्त उन्नत द्वारों वाले रत्न-निर्मित भवन होते हैं ।।६५० ।।
सुर -मिरण - गेय • नाचण-तूर-रवेहि बिणाभिसेएहि ।
मोहसे ते मवणा, एस्केके भवन - भूमीम् I८५१॥
म :- भवन भूमियोंपर स्थित वे एक-एक भवन सुर-युगलोंके गीत, नृत्य एवं राजोंके शन्दोंसे सपा जिनाभिषेकोंसे शोभायमान होते हैं ।।
1. द.ब.क.ब.प. . वार ।