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________________ २५६ ] तिलोयपणती [ गापा:४८-८५१ परस-भूमि-भूसिलामो, वामो सीस-रंग-भूमीमो । मोहसिय - कानयाहि, पनच्चमाणाहि रम्मामो | | । गट्टमसाला समता। अर्थ:-सर्व नाटयशालाएं पाच भूमियों ( अण्डों-मंजिलों) से विभूषित, बतीस रङ्गभूमियों सहित और नृत्य करती हुई ज्योतिषी कन्याओंसे रमणीय होतो हैं ।।४।। 1 नाटकालाओंका वर्णन समाप्त हुआ । चतुर्थ वेदीतपो पउत्प-वेदो, हदि णिय-पढम-वेनिया-सरिसा । परि बिसेसो मावण - देवा वाराणि रक्खंति ItE४६॥ । तुरिय-चेवी समता। भर्ष:- इसके प्रागे अपनी प्रथम वेदी सदृष्य चौथो वेदी होती है। विशेषता मात्र इतनी है कि यहाँ दारों की रक्षा भवनवासी देव करते हैं ।।४ELI । पोमो वेदोका वर्णन समाप्त हुया । भवन-भूमियांसत्तो भवण-खिवीओ, भवणाई तासु रयण-रहवाई। धुव्वत - घय -'वाई, घर - सोरण - तुग - गगराई ५०॥ मर्ष :-इससे प्रागे भवन-मूमियां होती हैं। जिनमें फहराती हुई ध्वजा-पताकापों सहित एवं उत्तम तोरण-युक्त उन्नत द्वारों वाले रत्न-निर्मित भवन होते हैं ।।६५० ।। सुर -मिरण - गेय • नाचण-तूर-रवेहि बिणाभिसेएहि । मोहसे ते मवणा, एस्केके भवन - भूमीम् I८५१॥ म :- भवन भूमियोंपर स्थित वे एक-एक भवन सुर-युगलोंके गीत, नृत्य एवं राजोंके शन्दोंसे सपा जिनाभिषेकोंसे शोभायमान होते हैं ।। 1. द.ब.क.ब.प. . वार ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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