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________________ २६० ] तिलोपभाती [ पाया : ८६५-६ ६००० | ५४०० । ४.०० । ४२००1३६०० । ३००० । २४०० | १८००१२००1 १०८० । ६६ । ६४०। ७२० । १० । १४० । ४८० | ४२ । ३६० । ३०० । २४० । १८० । १२० । २७ । २१ । प्र:-निर्मल स्फटिकसे निर्मित सोसह दीवालोंके मध्य बारह कोठे होते है। इन कोठोंको ऊँचाई पपने-अपने जिनेन्द्रको ऊँचाईसे बारह-गुणी होती है ।।८६२॥ पीसाहिप - कोस • सयं, ईई कोद्वान उसह-माहम्मि । बारस - बग्गेण हिर्ष, पलही जाग गेमि • जिसं ॥३॥ पास-जिणे परवीसा, अरसीवी-अहिप-दुसय-पणिहवा । वीर-जिणि बंग, पंच-पणा रस-वाय एब-भमिका ।।८६४|| । सिरिमंडवा समसा। R:-ऋषभतीर्थकरके समवसरणमें कोठोंका विस्तार बारहके वर्ग (१४४) से भाजित एक सौ बीस कोस प्रमाण था। इसके मागे नेमिनाम पयंस क्रमसः स्तरोत्तर पांच-पांच कम होते गये है। पावं जिनेन्द्र के यह विस्तार दो सौ पठासोसे भाजित पच्चीस कोस बोर महापारणे पांच पनको इससे गुणाकर नो का भाम देनेपर जो लब्ध पाये उसने धनुष प्रमाण पा ६३-६४॥ श्रीमगपांका वर्णन समाप्त हुआ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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