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________________ गाथा : १४-८३५] चतत्वो महाहियारो [ २५१ घ्वभूमियों का विस्तारनिव-निय-परिस-शिवी, बेतिम-मेसोहवि पित्वारो। निय - णिय - पय - भूमीन, लेत्तिय • मेतो भुनेयम्बो ॥४॥ २६६।२५३ २६२ / ३३६ ३२० १३०६ ३९८ ३८०] ३६६।१६५। ३५४ | ३४२ १३२|१२१ १९०९ | EE | ७७ । ६६ | ५५ | ४४ | ३३ / ५५ । ४] २८८ २८८२८८ | २८८२८/२८८|२८८।२८८ / २८८२८८५७६/५७६| । पंचम-धय-मूमी समसा । प:-अपनी-अपनी जता-भूमियोंका जितना विस्तार होता है उतना ही विस्तार अपनी-अपनी ध्वज भूमियों का भी जानना चाहिए II८३YI । पंचम प्रजभूमिका वर्णन समाप्त हुमा । तीसरे कोटका विस्तारतबिया सासा अज्जम बना निय-लिसास-सरिसगुणा । परि म 'भुषो पासो, भारणा बार सलमया ॥३५॥ २२० । २३४ | ३२२ २३८ ३० ॥ २६ २६८ ॥ ३२ ३६६ ! २५ २६८ | ३३ / १६२ १.३६६ ३६० / २६ २८/२८ २६६२५५ 1 8 C २८८२८८२८८२८८ । २८८२ ८८२ . २८ ८।२०५७ । तविय-साखा समता' । मर्ष :-इसके आगे चाँदीके सदृश वर्णवाला तीसरा कोट पपने धूलिसाख कोटके ही सदृश होता है। परन्तु यहाँ इतनी विशेषता है कि इस कोटका विस्तार दूना होता है और इसके द्वाररक्षक, भवनवासी देव होते है॥३५॥ । तीसरे कोटका वर्णन समाप्त प्रा । .....ज. पण। २, प.क. ब. म.न. सम्मता ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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