SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ २५० | तिलोयपणती [ गारा : ८३१-८३३ पासम्मि भ-शा, पम्मा पचवल्या चा-पबिहता । पउवाला पाक-हिना, मिट्ठिा बढमाणम्मि १३१॥ २६४२ २१४, २३२ १२४२ । २३१ | २२० १२०९ | १९८१६७१७६ | १५ | १४| म:-ऋषभदेवक समवसरणमें इन स्तम्शेका विस्तार तीनसे भाजित दो सौ पाँसठ अंगुन पा। फिर इसके आगे नेमिनाप पर्यन्त क्रमशः भाज्य राशि में ग्यारह-नयारह कम होते गये है। पारवनायके समवसरण में इन स्तम्भोंका विस्तार छह से विभक्त पचपन अंगुल और पर्षमान स्वामी के बहसे माजित चवालीस अंगुन प्रमाण कहा गया है।1८३०-३१॥ ध्वजदण्डोंका अन्तरधप-बंगाचं अंतरमुसह-नि यसपाणि चविणYANAYE K LATE पीसेहि हिवाणि, पण-कवि-होणागि जाब मि-निजं ।।६३२।। | ५. ६.०/१७५ २४ । २४ । IYo०७४ २४।२४ ३२५ ३० ३४४ १२५० / २२१ १२० ११७४ | ३५० | १३५ १४ | | पणवीस-हिय-ध-सय 'अडवास-हिवं च पासणाहम्मि । बोर - जिणे एक - सयं, सेतिय - मेहि मनहरिद ॥३३॥ प्र:- ऋषभ जिनेन्द्र के समवसरणमें ध्वज-दण्डोंका अन्तर चौरीससे माषिप्त यह सो धनुष प्रमाण था । फिर इसके आग नेमि-जिनेन्द्र पन्त भाज्य राशिमसे क्रमशः उतरोत्तर परिका वर्ग अर्थात् पच्चीस-पच्चीम कम होते गये हैं। पावनाप तीपंकरके समवसरणमें इन ध्वज-दण्डोंका अन्तर अड़तालीससे भाजित एक सौ पच्चीस धनुष एवं पोर अिनेरके समवसरण में इतने मात्र ( महतालीस ) से भाजित एक सौ धनुष-प्रमाण या ।।८३२-३।। __- . - -.. - --"... ... - .. t. द. क, मानसहिद
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy