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तिलोयपणती
[ गारा : ८३१-८३३ पासम्मि भ-शा, पम्मा पचवल्या चा-पबिहता । पउवाला पाक-हिना, मिट्ठिा बढमाणम्मि १३१॥
२६४२
२१४, २३२ १२४२ । २३१ | २२० १२०९ | १९८१६७१७६ | १५ | १४|
म:-ऋषभदेवक समवसरणमें इन स्तम्शेका विस्तार तीनसे भाजित दो सौ पाँसठ अंगुन पा। फिर इसके आगे नेमिनाप पर्यन्त क्रमशः भाज्य राशि में ग्यारह-नयारह कम होते गये है। पारवनायके समवसरण में इन स्तम्भोंका विस्तार छह से विभक्त पचपन अंगुल और पर्षमान स्वामी के बहसे माजित चवालीस अंगुन प्रमाण कहा गया है।1८३०-३१॥
ध्वजदण्डोंका अन्तरधप-बंगाचं अंतरमुसह-नि यसपाणि चविणYANAYE K LATE पीसेहि हिवाणि, पण-कवि-होणागि जाब मि-निजं ।।६३२।।
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५.
६.०/१७५ २४ । २४ ।
IYo०७४
२४।२४
३२५ ३० ३४४ १२५० / २२१ १२० ११७४ | ३५० | १३५ १४ | |
पणवीस-हिय-ध-सय 'अडवास-हिवं च पासणाहम्मि । बोर - जिणे एक - सयं, सेतिय - मेहि मनहरिद ॥३३॥
प्र:- ऋषभ जिनेन्द्र के समवसरणमें ध्वज-दण्डोंका अन्तर चौरीससे माषिप्त यह सो धनुष प्रमाण था । फिर इसके आग नेमि-जिनेन्द्र पन्त भाज्य राशिमसे क्रमशः उतरोत्तर परिका वर्ग अर्थात् पच्चीस-पच्चीम कम होते गये हैं। पावनाप तीपंकरके समवसरणमें इन ध्वज-दण्डोंका अन्तर अड़तालीससे भाजित एक सौ पच्चीस धनुष एवं पोर अिनेरके समवसरण में इतने मात्र ( महतालीस ) से भाजित एक सौ धनुष-प्रमाण या ।।८३२-३।।
__- . - -.. - --"... ... - .. t. द. क, मानसहिद