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________________ उस्को महाहियारों अट्ठत्तर - सब-सहिया, एक्केक्का तं पि अन्धहिय-सया । सल्लय-पय-संबुत्ता, पत्तएक गाया : ८२७-८३० ] - दिसासु- फुटं ॥८२७॥ सुण्ण-लर-टूकार्यदलका सभ्य-याचं अर्थ :- चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येक दिशामें इन दस प्रकारकी ध्वजाओं में से एक-एक ध्वजा एक सौ आठ रहती हैं और इनमें से भी प्रत्येक ध्वजा अपनी एक सौ पाठ क्षुद्रध्वजामोसे संयुक्त होती हूँ ||८२७ ॥ चक्क कवकमेण-मिलियाणं 1 रणहि ॥६२६ ॥ [ २४e | ४७०८५० । धर्म :- शून्य, पाठ, माठ, शून्य, सात एवं चार अंकोंके क्रमशः मिलाने पर जो संख्या उत्पन्न हो उतनी ध्वजाएं एक-एक समवसरण में हुआ करती हैं ।।६२८ विशेषा:- १०-१० प्रकारकी महाध्वजाएं चारों दिशाओं में है. अतः १०२४४० प्रत्येक महाध्वजा १०८, १०८ है, अतः १०८४४०४३२० कुल महास्ववाएं हुई। इनमेंसे प्रत्येक महाध्वजा १०८, १०८ क्षुद्र बजाओं सहित हैं। इसप्रकार ( ४३२० x १०८ = ४६६५६० + ४३२० = ४७०८८० कुल ध्वजाऍ एक समवसरण में होतीं हैं । संलग्गा सयल-धयर, कनयत्वंमेसु रयण-सचिवेसु । च्हो चिमणिय-जिन तलु वर्षाएहि वारस हवेह ||२६|| ६००० | ५४०० | ४८०० | ४२००३६०० । ३००० | २४०० | १८०० | १२०० १०८० ६१० | २४ । ७२० | ६०० | ५४० ४८० | ४२० । ३६० । ३०० | २४० | १५० | १२० | २७ । २१ । अर्थ : समस्त ध्वजाएँ रत्नोसे खचित स्वर्णमय स्तम्भों में संलग्न रहती हैं । इन स्तम्भोंकी ऊंचाई अपने-अपने तीर्थंकरोंके शरीरको ऊँचाईस बारह-गुणी हुआ करती है ॥ ८२६ ॥ स्वम्भका विस्तार उलहम्मि बंभ- चउसकी पहिय-सु-सय-पाचाणि । तिय- भजिदानि क्रमसो, एक्करसूनाणि णेमि तं ॥ ८३०|| १. म. चरसहिए। २. ६. बिए म तदहि, म. उ. बिरा दिहि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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