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तिलोयपणती
[ गापा : ८२३-८२६ बो-दोसु पासेसु, सम्ब-धण-प्पणिधि-सम्ब-चोहीम् । हो-हो पाय-साला, ताण पुढे आविमटु-सालासु ॥२३॥ भावण-सुर-कण्णाओ, गम्चते गप्पवासि-कम्मायो। अरिंगम-अर-सालासु, पुवा' सुमणणा सबा ॥२४॥
Preसालासमा सुEERPAN
प्र:-सर्व वनोंके आधित सर्व वोषियों के दोनों पाश्वभागों में दो-दो नाटयशालाएं होती हैं। इनमें से आदिको आठ नाटपक्षालामोंमें भवनवासिनी देव-कन्याएं और इससे बागेकी आठ नाट्यशासाओंमें कल्पवासिनो कन्याएँ नृत्य करती हैं। इन नाटप-शातामोंका सुन्दर वर्णन पूर्वक सदृश ही है ॥२३-६२४ ।।
।नाटपणालाओंका कथन समान हुमा ।
सवियामओ वोमो, हति णिय विवियवेनियाहि समा । गरि विसेसो एसो, अक्सिया वार-रखगया ।।२।।
। तदिया वेदी समत्ता। मय:- तीसरी धेदियां अपनी-अपनी दूसरी पैदियों के सहन होती है। केवल विनेषता यह है कि यहाँ पर यक्षेन्द्र द्वार-रक्षक हुमा करते हैं ।।८२५।।
। तृतीय वेदो समाप्त हुई। ध्वज भूमिका बर्णन
ततो घप-भूमीए, दिवा-धया होति से च दस-मेया।
सौह गय-वसह-लगवइ-सिहि-ससि-रवि-हंस-पम-धमका-प ॥२६॥
प्रचं:-रके मागे ध्वज-भूमिमें सिंह. गज, वषभ, गरुड, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, पन और पक इन रिहोंसे चिह्नित दस प्रकारको दिम घ्यजाएं होती हैं ।।२६।।
...ब. उ. पुम्वासुरवणण।। क. ज. म. पुवामुववाणा ।