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२५२ ]
२६४ २८८
१३२ २८८
ततो ही
गिय निय वय
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प्रासाद,
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२५३ २४२
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२८६ २०८
२३१
२६०
तिलोत
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१२१
११०
६६
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£ € २६० २६० २६० २६० २६० २६० २८ २०० २६० २७६ ५७६
본보 ४४ ३३
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2012 | 101 | 101 |
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भूमिका विस्तार
वह मेहि संयुना ।
तुमीचं वासना-कप-मो ॥ ८३६ ॥
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२२०
२०६ ११८ १८७ १७६ १६५ १५४ १४३ २८८ २६० २६० २६० २६० २०० २८८२५०
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| REC | 250
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205
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अर्थ :- इसके आगे छठी कल्पभूमि है, जो दस प्रकार के कल्पवृक्षोंसे परिपूर्ण और अपनीअपनी ध्वज-भूमियोंके विस्तार प्रमाण विस्तार वाली होती है ।।६३६ ।।
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पार्यकि:- आचार्य श्री [ तालिका २२ पृष्ठ सं० २५३ पर देखिये |
1919
१. व.ज. प. वीरिए ।
[ गाया : ८३६-६३८
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कल्यभूमियों का वर्णन -
पाणंग-सूरियंगा,
सण-वत्यंग-भोमगंगा थ
आलम बीविय' भाषण- पाला तेयंगया तस्त्रो ||६३७॥
भाजनाङ्ग, माला और तेजा ये दस प्रकारके कल्पवृक्ष होते हैं ॥ ८३७॥
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- इस भूमिमें पानाङ्ग, तूर्यास भूषणा, वस्त्राङ्ग, भोजनाङ्ग बालपाङ्ग, दीपा
शिवरा
ते पाण सूर भूषण
यस्याहारालयप्यनीयाणि ।
भावण मासा जोदिणि बॅतो संकप्प - मेसेज ॥३८॥
मयं :–जे ( कल्पवृक्ष मनुष्यों को ) संकल्प मायसे पानक, वाद्य, आभूषण, वस्त्र, भोजन, दीपक, बर्तन, मालाएँ एवं तेजयुक्त पदार्थ देते हैं ||३८||