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गाथा : ६१३-६१५ }
पउत्थो महायिारो अर्थ :---ये उपवन भूमियां विविध प्रकारके वन-अमूहोंसे मण्डित, विविध नदियोंके पुलिन और कोड़ा पर्वतों से तपा अनेक प्रकार को उत्तम वापिकाओंसे रमणीय होती हैं ।।११२॥
एक्काए उबमान-शिथिए तरखो असोम-सत्तरता ।
चंपयवा सुपर-कचा बचारि पत्तारि ॥१३॥
मर्च :-एक-एक उपवन-भूमिमें प्रमोक, सप्तच्छद, चम्पक एवं अम्र, ये चार-चार सुन्दर रूपवाले वृक्ष होते हैं ।।१३।।
अंत्य वृक्षों की ऊंचाई एवं जिन-प्रतिमाएंपामर-परि-जवाण, देखनकम हर्षति उच्छेहा' ।
णिय-चिय-सिम-उदएहि वारस-गुणिवेहि सारिया ।।१४॥ ६००० । १४०० । ४८००। ४२० । ३६०० । ३००० । २४०० । १८०० । १२०. ItecI २६०।५४० । ७२० । ६०० | ५४० । ४८० । ४२० । २२० । ३०० । २४० १ १८० । १२० । २७ । २१ ।
घर्ष: पामरादि सहित चैत्य-पृक्षोंको अंगाई गारहसे गुपित प्रपने-अपने तौकरोंको ऊँपाईके सरश होती है ।।८१४॥
मनिमय-जिण-परिमाओ, मठ-महापारिहेर-फत्ताओ'।
एपस्सि चेतामम्मि चत्तारि पत्तारि ॥१५॥
पर्व:-एक-एक चैत्यक्षके माश्रित पाठ महाप्रातिहार्योसे संयुक्त चार-पार मणिमय जिन-प्रतिमाएं होती है ।।१५।।
२.
व.क. . य... स्मा ।
१. ब, एमभूदा सुन्दरभूमा, ब.ए. पन्चसमूदा मुहारभूवा । ३. प. ब. क. ब. म..गुत्तो।