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________________ २४२ तिलोयपणाती [ नापा : १०-१२ समूहों सहित वस्ली-क्षेत्र होते हैं। इनका विस्तार बातिका क्षेत्रोंके विस्तारसे दुगुना रहता है ।।८०८-०६।। । तृतीय-बल्ली-भूमि समाप्त हुई। तत्तो बिबिया साला, धूलोसालाण' पणणेहि समा । हुगुणो दो बारा, रजाममा बाल-सखणा गरि ॥१०॥ बिदिय-साला समत्ता। :-इसके प्रागे दूसरा कोट है, जिसका वर्णन धूलिसालोंके सहा हो है परन्तु इतना विशेष है कि इसका विस्तार दुगुना है और इसके द्वार रक्तमय है। यह कोट यक्ष जातिके देवों द्वारा रक्षित है ।। 2011 । दिनीय कोट का वर्णन ममाप्त हुमा । उपवन भूमितत्तो पाउस्थ-उववण भूमीए असोप-सतपम्म वषा । चंपय-पप-वगाई, पुवारि-बिलातु राजति ।।११॥ प्रयं:-इसके पागे चौथी उपवन भूमि होती है, जिसमें पूर्वादि दिवामोंके क्रमसे अशोकवन, सप्तपर्गमन. चम्पकवन. और आम्रवन, पे भार वन शोभायमान होते हैं ।।८१५॥ विषिह-बणसंड-मरन-विधिह-गई-पुसिण-कोडण-गिरीहि । विविह-पर-वाविमहि, उपवण-ममीन' रम्माओ ॥८१२ १. , सासोण। २. ६. ज. य. मंदा। ३. ब. म. भूभीक, ३. भूमोना।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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