SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२६ ] तिलोसपणसो [गाथा : ७७५-७७८ तानम्भंतरभामे, सालाओ पर विशाल-भाराम । सम्माझे पोवापि, एकेको' समवसरमम्मि ७५॥ मपं:-उनके अभ्यन्सर भागमें उत्तम विशाल द्वारोंसे युक्त कोट होते हैं और फिर इनके दोचमें पीठ होते हैं। ऐसी संरचना प्रत्येक समवसरगामें होती है ।।७५५॥ Firek : . समभव संसॉरिन कणयमयं । बुइयं तस्स व उरि, तबियं बह-वष्ण-रपगमयं ॥७७६।। मपं:-इनमेंसे पहला पीठ वैडूर्यमणिमय, उसके कपर दूसरा पीठ सुवर्णमय भार उसके भी ऊपर सोसरा पीठ बहुत वर्णके रत्नोंसे निर्मित होता है ॥७७६|| मादिम-पीदुम्यहो, वंम परनीत कम-तिय-हरिया। उसह-निणिरे कमसो, मना कि पतं ॥७७७॥ १४।१३।२२/२१/ २२ | १६ | १८1१५/१६ | ५|||३२|१२|१|| प्रम :-भगवान ऋषभदेवके समवसरणमे प्रथम पीठको कंचाई तीनसे भाजित चौबीस धनुष प्रमाण पी। इसके आगे नेमिनाथ पर्यन्त क्रमश: उत्तरोत्तर भाज्य-राश्चिमेंसे एक-एक अंक कम होता गया है ।।७७७|| पासे पंच च्छहिवा, तिवय-हिया पोन्नि पहमान-विणे । सेप्ताण अबमाणा, प्रारिम-पोस्स उदयाओ ॥७७८॥ १.प.क. ज. स. स. एसेवक ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy