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गया : ७७०-७७४ ]
अवतरम्मि तरणं, णवंत-भय-बाय'
उस्योमहाहियारो
-गोवर-वार-सुंदरा साला । मणि-किरयुज्जोइय-दिगंता ।।७७० ।।
पर्व :- उनके ( मानस्तम्भ- भूमियोंके } अभ्यन्तर भागमें बार गोपुरद्वारोंसे सुन्दर, नाचती हुई स्वम-पताकाओं सहित ओर मणियों की किरणोंसे दिन- मण्डलको प्रकाशित करनेवाले कोट होते हैं ।। ७७०।
तानं पि मन्भागे, बण-संडा विहि-हिब-त-भरिया' । फल- कोकिल-कल-कलया, सुर- किन्नर-मिट्टन संघ
॥७७१ ॥
एवं
उनके भी मध्य भाग में विविध दिव्य वृक्षोंसे संयुक्त, सुन्दर कोयलोंके कल-कल शब्दोंसे मुखरित और सुर एवं किवर-युगलों संकीर्ण वन बन्द है ।।७७१।। आवरी करवीरान तम्मन्के रम्माई, पुम्बा वि-विसासु लोयपालानं । सोम-अम-बधन-धणवा, हाँसि महा-कोकण-पुराई । १७७२।
तानमंतर भागे, साला चट-गोड रावि-परियरिया | ततो बनवाओ कलिडरमाणप्प - सहालो ।।७७३ ।।
:- उनके मध्य में पूर्वादिक दिशाओंमें क्रमशः सोम, यम, वरुण और कुवेर, इन लोकपालोंके अत्यन्त रमणीय महाकोडा नगर होते हैं ११७७२ ।।
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अनं :- उनके अभ्यन्तरभागमें चार गोपुरादिसे वेष्टित कोट और इसके धागे बन-वापिकाएं होती हैं, जो प्रफुल्लित नीलकमलों से शोभायमान होती हैं ।।७७३ ।।
पुराई ।
तायं मक्के जिय-त्रिय-विसासु विध्याणि कीड हुबहु मेरिवि-मारव-ईसागानं न लोयपालानं ।। ७७४॥
अर्थ :- उनके बीचमें लोकपालोंके अपनी-अपनी दिवामें तथा आग्नेय, नैऋत्य, और ईशान इन विदिशामों में भी दिव्य क्रीडनपुर होते हैं ।। ७७४ |
१. ८. क. अ. प. उ. पषाथा । 3.5, 1. 4. 2. fenia), «, «ferð | परिया, जबरिया । ४. ए. व. क.अ.य. उमाि
मायव्य
१. ए.