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________________ २१८ ] तिलोयपण्णत्ती माथा:७५७-७५८ २४ | २३ | २२ १२१ २०१६ | १८ | १० | १६ | १४|१४ | १३ | १||४|१४४१४४/ twizrelimin४|४|१४१४| .ji:- श्री सारी 3 ३ । १४४।१ म:-मगवान् ऋषभदेवके समवसरणमें धूलिखामका मुम-विस्तार बारहके वर्ग भाजित पौबीस हो कोस प्रमाण पा। फिर इसके आगे भगवान् नेमिनाय पर्यन्त (भाग्य राशिमें से) क्रमश: एक-एक कम होता गया है ।।७५६।। अस्सीरियोसहि, भजिया पासम्मि पंच कोसा । एक्को म माने, 'कोसो बाहतरी-हरिवो ॥७५७।। |३६६ १७/ पर्प-गवान् पानायके समवसरणमें धूलिसालका मूल विस्तार दो सौ मलासीसे भाजित पौष कोस और वर्षमान भगवान् के समक्सरणमें उसका विस्तार बहसरसे भाजित एक कोस प्रमारा पा ७१७|| मझिम-रिम-भागे, पूलीसालाग कप-बएसो । काल-बसेन पट्टो, सरितीवम्याग-बिरयो व्य ॥७५८t लोप्साला समसा । वर्ष :-धूलिसालोंके मध्य और उपरिम भागके विस्तारका उपदेशश कालबससे नदी. तौरोत्पन्न वृक्षके सहण नष्ट हो गया है ।।७५८।। । धूलिसरसों का वर्णन समाप्त हुआ। - -- - -- t. ब.प. कोसा। २. ८. न. क. १. स. परितोषप्पयाविरों म।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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