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याषा:७५२-७
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चल्यो महाहियारो पूलीसाला-गोवर-वारेतुं परसु होति पत्तक । वर-रया-पर-हत्या, मोइसिया गार रक्लनमा ||७५२॥
म:-धूलिसालके चारों गोपुरोंमें से प्रत्येकमें, हायमें उत्तम रलदण्डको लिए हुए ज्योतिष्क देव द्वार-रक्षक होते है IMEIPE :
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पउ-गोउर-चारेसु, बाहिर-आभंतरम्मि मास्मि । सह-सुबर-संचारा. सोवासा विधिह-रयरणमया ।।७५३।।
पर्य :-बारों गोपुरद्वारों के बाह्य मोर प्रभ्यन्तर भागमे विविध प्रकारके रहनोंसे निमित, सुख-पूर्वक सुन्दर संचार योग्य सीढ़ियां होती है ।।७५३।।
पतीसालाण पुलं, शिय-जिन-होग्य-पमाणेणं । बन-गुणिरेणं उदओ, सम्मु वि समवसरणेसु ॥७५४।।
२००० । १८००। १६०० । १४०० । १२०० । १००० | ८०० । ६.० । ४०० । ३६० १ ३२० । २८० । २४० । २०० । १८० । १६० । १४० १ १२० । १७ ।
८०। ६० । ४. 1 हत्याणि ३६ । २८ । प्रबं:-सब समयसरणोंमें धूलिसालोंको ऊँचाई अपने-मपने तीर्थकरके शरीरके उसेघ प्रमाणसे चोगुनी होती है ।।७५४।।
सोरण-उबओ अहिलओ, धूलोसालाए उपय-संसायो । ततो य सादिरेगो, भोउर-बाराख सपलाणं ॥५५
:-धूलिसालोंको ऊंचाईको संध्यामे तोरणोंकी ऊंचाई अधिक होती है और इनसे भी अधिक समस्त गोपुरोंकी ऊँचाई होती है |
बउबीसं चेय कोसा, फूलोसालाए मूल-वित्पारा । बारस-बम्गेण हिवा, ऐमि-मिगत कामेण एपररणा ॥७५६॥