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गाया : ७२८-७३० ]
रथो महाहियारो
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अर्थ :- यहाँ कोई आषायं पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न हुए तीर्थकरों की समवसरण - भूमिको वारक योजन प्रमाण मानते हैं
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की
। सामान्य भूमिका वर्णन समाप्त हुआ ।
सोपानों के विस्तार भादिका निर्देश
सुर-नर- तिरियारोहन-सोबाचा चविसासु पत्तेयं । वीस-सहस्सा गयणे, कणयमया उड्द- उगृहम् ॥७२६ ।।
| सोपान २०००० । ४ ।
प्र : देवों, मनुष्यों और तिर्यञ्चोके चढ़नेके लिए माकाणमें जारों दिशाओं से प्रत्येक दिशामें ऊपर-ऊपर स्वर्णमय बीस-बीस हजार सीढ़ियाँ होती है ।।७२८ ।।
उसहादी अजबी जोपण एकूण गेमि-पक्तं । अजवी भजिदम्वा वोहं सोबरन नादवा ॥७२६॥
२४ | | २१ | २० | १६ | १५
१२
। २३।३३/३/३० १७|१६||
२४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ । २४ ६ २४
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पाठान्तर
अर्थ :- ऋषभदेवके ( समवसरण में ) सोपानों की लम्बाई २४ से भाजित पौबीस योजन है । पश्चात् नेमिनाथ पर्यन्त ( भाज्य राशिमेंसे) क्रमश: एक-एक योजन कम होती गई है ।।७२६ ।।
पासन्नि पंच कोसा, चड बोरे अद्भुताल महरिया । इमिन्हत्गुच्छे से सोबाणा एक्क-हत्व वाला य ।।७३०॥
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| सोवरणा' समत्ता ।।
१. प्र. ज. प. सोचा समाउ होसम्मता ।