SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाया : ७२८-७३० ] रथो महाहियारो { २०७ अर्थ :- यहाँ कोई आषायं पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न हुए तीर्थकरों की समवसरण - भूमिको वारक योजन प्रमाण मानते हैं 20 की । सामान्य भूमिका वर्णन समाप्त हुआ । सोपानों के विस्तार भादिका निर्देश सुर-नर- तिरियारोहन-सोबाचा चविसासु पत्तेयं । वीस-सहस्सा गयणे, कणयमया उड्द- उगृहम् ॥७२६ ।। | सोपान २०००० । ४ । प्र : देवों, मनुष्यों और तिर्यञ्चोके चढ़नेके लिए माकाणमें जारों दिशाओं से प्रत्येक दिशामें ऊपर-ऊपर स्वर्णमय बीस-बीस हजार सीढ़ियाँ होती है ।।७२८ ।। उसहादी अजबी जोपण एकूण गेमि-पक्तं । अजवी भजिदम्वा वोहं सोबरन नादवा ॥७२६॥ २४ | | २१ | २० | १६ | १५‍ १२ । २३।३३/३/३० १७|१६|| २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ २४ । २४ ६ २४ || पाठान्तर अर्थ :- ऋषभदेवके ( समवसरण में ) सोपानों की लम्बाई २४ से भाजित पौबीस योजन है । पश्चात् नेमिनाथ पर्यन्त ( भाज्य राशिमेंसे) क्रमश: एक-एक योजन कम होती गई है ।।७२६ ।। पासन्नि पंच कोसा, चड बोरे अद्भुताल महरिया । इमिन्हत्गुच्छे से सोबाणा एक्क-हत्व वाला य ।।७३०॥ ||||| Y ४८ | सोवरणा' समत्ता ।। १. प्र. ज. प. सोचा समाउ होसम्मता ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy