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मामलोपपपणती वर ने लिया गया सामान्य भूमि, उसका प्रमाण एवं प्रवपिरतीकालके समवसरणोंका प्रमाण -.
रबिमंडल का बट्टा, सयला वि अखण्ड-बनोसामई। सामग्ण-लिदी वारस, जोयन-मतं मि उसहस ॥७२४।। तत्तो थे - कोसूणों, परोयं मिणाह • पन्धतं ।
उमागेण विहोला, पासास य पहमाणस्स ।।७२५॥ उ बोयण १२ । भजिय ।। सं ११ । पहिणं । सु१० । । मु.। । पु८ । सो से ७ वा. दि६। म २५ ।सं। कु४।मः । म ३ । मु: । स २ । णे है । पा ।वी १।
मपं:-मगवान ऋषमदेयके समवसरमकी सम्पूर्ण सामान्य-भूमि मूर्यमणाप्लके सदृश गोल, अखण्ड, इन्द्रनीलमणिमयी तषा बारह योजन प्रमाण विस्तारसे युक्त थी। इसके आगे नेमिनाप पर्यंत प्रत्येक तीपंगुरके ममवसरणको सामान्य भूमि दो कोस कम तथा पावनाष एवं पर्षमान तीर्थंकरको योजनके चतुर्ष भागसे (यो.) कम थी।७२४-७२५॥
उत्सपिणीकाल सम्बन्धो समवसरणका प्रमाणअवसप्पिणिए एक, भगिई उस्सप्पिनीए विवरीयं । पारस-जोयंग-मेत्ता, समल-विवेह-तिस्प-कचामं ॥२६॥ । ।२।।३।।४।31 ५ ।
। ८ ।६ ।१० ।११। १२। पर:-यह जो सामान्य भूमिका प्रमाण बसखाया गया है, वह स्वसपिणी कालका है। उस्सपिणी कालमें इससे विपरीत है। विदेह क्षेत्रके सभी तोपरोक समवसरएकी भूमि बारह योजन प्रमाण ही रहती है ।।७२१॥
मतान्तरसे समवसरणका प्रमाणइह केई आरिया, पणारस-कम्मभूमि-अस्वाणं । तिस्थयरानं गारस-जोयण-परिमाग-मिछति ।।७२७॥ ।१२।
पाठान्तरम् । साम-झूमी समता'।
१.ब.क.अ.म.उ.मम्मत्ता।