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________________ २०८ ] तिलोत [ गाया : ७३१-७१२ अर्थ :- भगवान् पार्श्वनाथके समवसरण में सीढ़ियोंकी लम्बाई अड़तालीस माणित पांच कोस और वोरनायके मड़तालीससे भाजित चार कोस प्रमाण थी। वे सीढ़ियाँ एक हाथ ऊंची और एक ही हाथ विस्तारवालीं थीं ।।७३० ।। 1 सोपानों का कथन समाप्त हुआ । समवसरणका विन्यास -- धार्मवर्तक :- सपाद की शायरी चर साला वेबौलो, पंच तवंतेसु अटु नभओ । सम्बभंतरभागे, पक्कं तिनि पीडानि ॥ ७३१ ॥ | साला ४ । वेदो ५ भूमि पीढारिए । । विष्णासो समतो' । :-चार कोट, पांच वैदियों, इनके बीच माह भूमियों और सर्वत्र प्रत्येकके अन्तर भागमें तीन पीठ होते हैं ॥१७३१ ॥ | विन्यास समाप्त हुआ। समवसरणस्य वीचियोंका तिरूपण पलेर्क चला, कोही पढम-पीड- पन्ता । जिय-जिय-जिम-सोवालय-बीहतन सरिस - बिस्वास ॥ ७३२॥ ३४||३||३०||१६| ||३||[||] :- प्रथम पीठ पर्यन्त प्रत्येक में अपने-अपने तीर्थकुटके समवसरणभूमिस्व सोपानोंकी लम्बाईके बराबर विस्तार वाली चार वीथियाँ होती हैं ॥७३२ ॥ (. . 4. 5. 3. 1981, 4. BOWA) 1 - ४८
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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