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गापा : ६९७-७०१ ] बठत्यो महाहियारो
[१७ म :-श्रेयांस जिनेन्द्रको माधकी अमावस्या दिन पूर्वाह्नमें अषण नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें केवलज्ञान प्राप्त हुमा ।।६६६॥
माघस्स पणिमाए, विशाह-रिक्खे मनोहरजाये।
अबरण समार, कवलणाम बासु किया
म :-वासुपूज्य जिनेन्द्रको माघ { शुक्ला ) पूणिमाके अपरा में विशाखा नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यानमें केवलबान उत्पत्र हुमा ॥६६७||
पुस्से सिक-बसमोए, अबरन्हें तह य उत्तराप्ताले ।
विमल-जिनिय' सार्व, अनंतणार्ग सहेदुर्गाम्म पणे ॥६॥
म :-विमल जिनेन्द्रको पोष-शुक्ला दसमीके अपरा में उत्तराषाढा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें अनन्तज्ञान उत्पन्न हुा ।।६६८||
पेचस्स घ अमबासे, रेववि-रिसे सहेम्मि वणे ।
अवरोहे संजावं, केवलगागं अर्गत जिगे ॥६६६॥
प:--मनन्त जिनेन्द्रको मंत्रमासी प्रमावस्याके अपरा. रेवती नक्षत्रके रहते सहेतुक बनमें केवलज्ञान उत्पन्न झुमा ||६||
पुस्सस्स पुणिमाए, पुस्से रिश्ते सहेम्मि बगे। अवरहे संजा, धम्म-निविस्त' तवग ७००।।
मर्थ:-धर्मनाथ जिनेन्द्रको पौष भासको पूणिमा के दिन अपराल में पुष्य नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें सर्व पदार्थोको जामने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हुपा ।।७।।
पस्से 'सुस्केयारसि भरती-रिक्ने विपस्स पच्छिमए। पन-वने संबावं, सति-जिणेसस्स केवलं गाग ०१॥
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१. ब. क. बिदे। ..... अंबादो, य. संबादा ।
२. प. विवस्स, व. जिगरस्स।
३. प. पारसि ।
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