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तिलोयपासी
[ गाथा : ६१२-६६६ म :- पमप्रभ जिनेन्द्रको वैशाख-गुबता दसमीके अपराहमें चित्रा नक्षत्रके रहते मनोहर उद्यान में केवलज्ञान उत्पन्न हुपा ।।६६१॥
फगुण-कोण संसमि, बिसाहरिबहानाम्म मा
अबरव्हे 'असतं, सपास-पाहत संजावं ॥६६॥
म :-सुपार्श्वनाथको फारगुन कृष्णा सप्तमोके अपराह्नमें विशाखा नक्षत्रके रहते सहेतुक बनउँ पसपटन ( केवलजान ) उत्पन्न हुआ था ॥६६२।।
सहिबसे अणुराहे, सम्बत्म-धणे शिणस्त पश्विमए ।
पह-जिरण-गाहे. संजा सम्वमाव-गरं ॥६ ॥
प्रपं:-चन्दप्रम जिनेन्द्रको उसी दिन ( फाल्गुन कृष्णा सप्तमीको दिनके पश्चिम भाग (पपराह ) में मनुराया नक्षत्रके रहते सर्वार्थ वनमें सम्पूर्ण पदापोंको अवगत करने वाला फेवलज्ञान उत्पन्न हुप्रा ।।६६३॥
· कत्तिप-सुरके सदिए, अवरम्हे मूल-मे य पुष्कवने।
सुविहि-निमे उम्पन्ध, तिवण-संखोभवं नागं ।।६६४॥
प्र:-मुधिधि जिनेन्द्रको कार्तिक-जुक्ला तृतीयाके पपराइमे मूल नक्षत्रके रहते पुष्पबनमें तीनों लोकोंको पारपर्यान्वित करनेवाला केवलशाम उत्पन हुआ । ६EVI
पुस्सस्स किन्ह-बोहसि-पुष्वासाः विष्णस्स पच्छिमए । सोयल-जिमस्स जावं, अणतमा सहदुगम्मि दो ॥६५॥
प्र :-शीतसनाप तोपंधरको पोष-कृष्णा चतुर्दशीको दिमके पश्चिम भागमें पूर्वाषाढ़ा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें अनन्तशान उत्पन्न हुआ ।।६।।
माघस्स प अमबासे, पुण्याहे सपनम्मि सेबसे । जावं केवलणागं, सुबिसाल-मणोहरमाणे ॥६६॥
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य.च.बसत ।