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महाहियारो
चौबोसों तीरोंके केवलज्ञानको तिथि, समय नक्षत्र और स्थानका निर्देश
फग्गुण-किमारत पुग्वच्छे पुरिमताल-गयरम्मि ।
गाया : ६६६-६९१ ]
परिवारम्
॥६६६॥
:- ऋषभनाथको फाल्गुन-कृष्णा एकादशों के पूर्वाह्न उत्तरापाठा नक्षत्रके उदित रहते पुरिमताल नगरमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ||६८६॥
पुस्सस्स सुरु- चोस अवरष्हे रोहिणिम्मि क्लत्ते । अजिप-जिणे उभ्यन्णं, अनंतनागं सहेतुग्रम्मि वर्ण । ६८७ ।।
:- अजित जिनेन्द्रको पौष-शुमला चतुर्दशोके परामें रोहिणी नक्षत्र के रहते सहेतुक बनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुमा ।।६६७ ।।
कति सुन पंचमि-अवरव्हे मिसिरम्मि रिक्लम्म । संभव-जिनस जावं, केवलभाणं सु तम्मि वर्षा ।। ६८६ ॥
अर्थ:-सम्भवनाथ जिनेन्द्रको कार्तिक शुक्ला पंचमीके अपराह्न मृगशिरा नक्षत्रके रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।।६८८ ।।
पुस्सस्स पुणिमाए, रिक्तम्मि पुणम्वसुम्मि अवरहे । उष्ण-बणे
अभिगवण-जिणस्स
संजय सव्वगमं
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॥६६६ ॥
बाइसाह- सुबक-वसमी, मघाए रिक्खे अवरहे उप्पणं समझ-जि
अर्थ :- प्रभिनन्दन जिनेन्द्रको पौष ( शुक्ला । पूर्णिमाके अपराह्न पुनर्वसु नक्षत्रके रहते उप-वनमें सर्वगत (केवलज्ञान ) उत्पन्न हुआ || ६८६ ॥
सहेदुगम्मि बणे ।
केवलं गाणं २६६०॥
ध: सुमति जिनेन्द्रको वैशाख शुक्ला दसमीके अपराद्धमें मघा नक्षत्र के रहते सहेतुक वनमें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ ।। ६६० ।।
बसाहक्क-समी, वेता-रिश्ते मनोहरजाने अवरव्हे उप्पर्ण, पउमच्यह-जिगरदस्स ||६६१||