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________________ १९४ ] [ गाथा ६८३-६८५ वर्ष वर्ष बारह वर्ष और बीस वर्ष प्रमाण तथा पद्मप्रभका मात्र मास प्रमाण ही है ।। ६८२ ।। तिलोय गती अर्थ – ऋषभ किती - बासाणि नव सुपासे, भासा चंदप्यहम्मि सिणि तो । च-लि-दु-एक्का ति हु-द्वगि- सोलस-बब गाउको बासा ।।६८३ ।। सुपास वास है। चंद मा ३ । पुष्फे वा ४ | सोयल वास ३ । सेयं वा २ । घासु १ । विमल ३ । अनंत २ । धम्म १ संक्षि १६ । कुयु १६ । बर १६ १ अर्थ :- सुपाश्वनाथ स्वामीका छथस्य काल नौ वर्ष, चन्द्र एका तीन मास और इसके आगे क्रमशः चार, तीन, दो, एक, तीन, दो, एक, सोसह, चारका वर्ग ( सोलह ) और फिर चारकी कृति ( सोलह ) वर्ष प्रमाण है ।।६८२ ।। मल्लि जिणे दिवसा एक्कारस सुम्बवे जिणे मासा । जमिणाहे जब बासा, विनाणि खपन्ण भेमि जिले ।। ६८४ ।। । मल्लि - दिशा ६ । सुव्वद मा ११ । रामि वा है । मिदि ५६ । अयं : – समस्थ कालमें मल्लि जिनेन्द्रके छह दिन मुनिसुव्रत जिनेन्द्रके ग्यारह मास. नमिनाबके नौ वये बोर नेमिनाथके छप्पन दिन व्यतीत हुए ॥ ६८४॥ पास जिणे मासा, बारस-वासाणि वदमाण-विणे । एलिमेले समए, केवलगाचं' म सान उप्पन्न ॥१८५॥ | पास पास ४ । वीर वासा १२ । प :- पावं जिनेन्द्रका चार मास और वमान जिनेन्द्रका बारह वर्ष प्रमाण अस्प काल रहा है। इतने समय (उपर्युक्त छद्मस्य काल ) तक उन तीर्थकरोंको केवलज्ञान नहीं हुआ या ।।६८।० १. ब. क.प.उ. केवलरणारी. ज. केवलालाएं ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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