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तिलोयपणतो
[ गाषा : ६६६-६७. मेस्स बहुल-'परमो-अवरो पणिम्मि चूदा।
परिवरजवि पध, संति-जिलो तविष-उदबासे ॥६६॥
प :-शान्तिनाथ जिनेन्द्रने ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्थीके अपराहमें भरणी नक्षत्रके रहते माप्रवनमें तृतीय उपवासके साप जिन दीक्षा धारण की ।।६६९।।
पाइसाह-सुब-पादिव-अबरहें कित्तियासु सण-तिए । कुंपू सहदुग-वणे, पम्नजिओ मनमिळण सिद्धार्ण १६६७।।
म: कुन्थुनाथ स्वामी देशाध शुक्ला प्रतिपदाके अपरामें कृतिका नक्षत्रके रहते सहेतुक बनमें तृतीय उपवासायह रिशकोंको फुलारीक्षिEARNITED AEETS
मगसिर-सुख-समी-अपरहे रेवदीसु अर-देवो ।
तरिप-सामम्मि गेहदि, विणिर-वं सहेंगम्मि बने ।।१६।।
प:-परनाथ तीर्थकरने मगसिर मुक्सा दसमीके अपराहृमें रेवती नक्षत्रके रहते महेतुक वनमें तृतीय उपवासके साप जिनेन्द्ररूप ग्रहण किया ।।६६८॥
'मगसिर-सुख-एक्कासिए आह मस्सिगीसु पुज्यन्हें । 'परवि सवं सालि-वर्ग, "मल्लो ग मलेन ।।६६६।।
:-मल्लि जिनेन्द्रने मसिर-शुक्सा एकादशोके पूर्वाह्यमें अश्विनी नक्षत्रके रहते शालि वनमें षष्ठ भक्तके साथ तप धारण किया ॥६ ॥
बासाह-बहल-वसमी-प्रवर सबम्मि पील-बगे। उनचासे सपियम्मि य, समारयेवो महान पर्व ।।६७०।।
मर्थ:-मुनिसुन्नतदेवने वैशास्त्र कृष्णा दसमीके अपराहमें प्रवण नक्षत्रके उदय रहते नौल-पनमें तृतीय उपवासके साप महावत धारण किये ।।६७० ।।
१.प. ब. उ. पोती, प. य. पोती। स. व. मरिन । ४. ...क... म. उ. मालि।
२. प. उ. सिवाणा ..... परिवि.क.
५. द.प.क. उ. वैवा।