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________________ १८८ ] तिलोयपणतो [ गाषा : ६६६-६७. मेस्स बहुल-'परमो-अवरो पणिम्मि चूदा। परिवरजवि पध, संति-जिलो तविष-उदबासे ॥६६॥ प :-शान्तिनाथ जिनेन्द्रने ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्थीके अपराहमें भरणी नक्षत्रके रहते माप्रवनमें तृतीय उपवासके साप जिन दीक्षा धारण की ।।६६९।। पाइसाह-सुब-पादिव-अबरहें कित्तियासु सण-तिए । कुंपू सहदुग-वणे, पम्नजिओ मनमिळण सिद्धार्ण १६६७।। म: कुन्थुनाथ स्वामी देशाध शुक्ला प्रतिपदाके अपरामें कृतिका नक्षत्रके रहते सहेतुक बनमें तृतीय उपवासायह रिशकोंको फुलारीक्षिEARNITED AEETS मगसिर-सुख-समी-अपरहे रेवदीसु अर-देवो । तरिप-सामम्मि गेहदि, विणिर-वं सहेंगम्मि बने ।।१६।। प:-परनाथ तीर्थकरने मगसिर मुक्सा दसमीके अपराहृमें रेवती नक्षत्रके रहते महेतुक वनमें तृतीय उपवासके साप जिनेन्द्ररूप ग्रहण किया ।।६६८॥ 'मगसिर-सुख-एक्कासिए आह मस्सिगीसु पुज्यन्हें । 'परवि सवं सालि-वर्ग, "मल्लो ग मलेन ।।६६६।। :-मल्लि जिनेन्द्रने मसिर-शुक्सा एकादशोके पूर्वाह्यमें अश्विनी नक्षत्रके रहते शालि वनमें षष्ठ भक्तके साथ तप धारण किया ॥६ ॥ बासाह-बहल-वसमी-प्रवर सबम्मि पील-बगे। उनचासे सपियम्मि य, समारयेवो महान पर्व ।।६७०।। मर्थ:-मुनिसुन्नतदेवने वैशास्त्र कृष्णा दसमीके अपराहमें प्रवण नक्षत्रके उदय रहते नौल-पनमें तृतीय उपवासके साप महावत धारण किये ।।६७० ।। १.प. ब. उ. पोती, प. य. पोती। स. व. मरिन । ४. ...क... म. उ. मालि। २. प. उ. सिवाणा ..... परिवि.क. ५. द.प.क. उ. वैवा।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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